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अद्वारम् - [ न० त०] जो दरवाजा न हो, मार्ग या रास्ता जो नियमित रूप से द्वार न हो; अद्वारेण न चातीयाद् ग्रामं वा वेश्म वा पुरम् - मनु० ४। ७३ । अद्वितीय ( वि० ) [ न० ब० ] 1 जिसके समान कोई दूसरा न हो, बेजोड़, लासानी, न केवलं रूपे शिल्पेऽप्यद्वितीया मालविका - मालवि० २ 2 बिना साथी के, अकेला, यम् ब्रह्मा ।
अद्वैत ( वि० ) [ न० ब० 11 द्वैत हीन, एकस्वरूप, एकस्वभाव, समभाव, अपरिवर्तनशील, 'तं सुखदुःखयो:-- उत्त० ११३९, 2 बेजोड़ लासानी, एकमात्र, अनन्य, -तम् 1 द्वैत का अभाव, तादात्म्य, विशेषतया ब्रह्म का विश्व या आत्मा के साथ, या प्रकृति का आत्मा के साथ दे० 'अद्वय' भी 2 परमसत्य या स्वयं ब्रह्म । सम ० -- वादिन् - अद्वयवादिन् दे० ऊपर, वेदान्त का अनुयायी ।
अम (वि) [ अव् + अम, वस्य स्थाने धादेशः ] निम्नतम,
जघन्यतम, अत्यंत कमीना, बहुत बुरा, नीच या निकृष्ट ( गुण, योग्यता और पदादिक की दृष्टि से ) ( विप० उत्तम ), - - मः निर्लज्ज लम्पट – वापी स्नातुमितो गतासि न पुनस्तस्याधमस्यान्तिकम् - काव्य ० १ : --मा निकम्मी गृहस्वामिनी । सम० -- अङ्गम् पैर, - अर्धम् नाभि से नीचे का शरीर ऋणः, - ऋणिकः कर्जदार ( विप० उत्तमर्णः ), भृतः, - भृतकः कुली, साइस । अघर ( वि० ) [ नत्र + धृ + अच् ] 1 नीचे का, अवर, निचला 2 नीच, कमीना, जघन्य, गुणों में नीचे दर्जे का, घटिया, 3 निरुत्तर, दलित; रः नीचे का ( कभी ऊपर का) ओष्ठ, ओष्ठमात्र; - पक्वबिंबाधरोष्ठी- मे० ८२; पिबसि रतिसर्वस्वमधरम् श० ११२४; -- रम् 1 शरीर का निम्नतर भाग 2 अभिभाषण, व्याख्यान ( विप० -उत्तर), कभी ? उत्तर के लिए भी प्रयुक्त होता है | सम० उत्तर (वि०) 1 उच्चतर और निम्नतर अच्छा और बुरा - राज्ञः समक्षमेवावयोः 'व्यक्तिर्भविष्यति - मालवि० १ 2 शीघ्र या विलम्ब से, 3 उलटे ढंग से, उलट-पलट 4 निकटतर और दूरतर, - ओष्ठः नीचे का ओष्ठ, कंठः ग्रीवा का निचला भाग, --- पानम् चुम्बन, शाब्द० अवरोष्ठ को पीना, - मधु, अमृतम् ओष्ठों का अमृत, स्वस्तिकम् अधोबिन्दु ।
अधरस्मात्, रतः, स्तात्, रात्, तात्, रेण ( अव्य० ) नीचे, तले, निचले प्रदेश में ।
अधरीकृ ( तना० उभ० ) [ अधर + च्चि + कृ ] आगे बढ़ जाना, पटक देना, पराजित करना ।
अधरीण ( वि० ) [ अधर +ख ] 1 नीचे का 2 निंदित, कलंकित, तिरस्कृत ।
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अधरेद्युः (अव्य० ) [ अघर + एद्युस् ] 1 पहले दिन 2 परसों ( जो बीत गया ) । अधर्मः - [ न० त० 1 बेईमानी, दुष्टता, अन्याय; अधर्मेण अन्यायपूर्वक 2 अन्याय्य कर्म, अपराध या दुष्कृत्य, पाप । धर्म और अधर्म, न्यायशास्त्र में वर्णित २४ गुणों में दो गुण हैं और यह आत्मा से संबंध रखते हैं, ये दोनों क्रमश: सुख और दुःख के विशिष्ट कारण हैं, यह इन इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं हैं, परन्तु इनका अनुमान पुनर्जन्म तथा तर्कना के द्वारा लगाया जाता है 3 प्रजापति या सूर्य के एक अनुचर का नाम, र्मा साकार बेईमानी, मम् विशेषणों से रहित, ब्रह्मा की उपाघि । सम० - आत्मन् - चारिन् (वि०) दुष्ट, पापी । अधवा ( न० ब० ) विधवा स्त्री ।
अघसू, अध: ( अव्य० ) [ अधर - असि, अधरशब्दस्य स्थाने अधादेशः ] 1 तले, नीचे - पतत्यधो धाम विसारि सर्वतः - शि० ११२, निम्नप्रदेश में, नारकीय प्रदेशों में या नरक में (प्रकरण के अनुसार 'अध:' शब्द का अर्थ कर्तृकारक का होता है - अंशुकं आदि; अपादान के साथ - अधो वृक्षात् पतति या अधिकरण के साथ -- अघ गृहे शेते), 2 संबंधकारक के साथ 'संबंधबोधक अव्ययों' की भांति प्रयुक्त 'के नीचे' 'के तले' अर्थ को प्रकट करते हैं - तरूणाम् श० १११४, ( जब द्विरु
की जाती है तो अर्थ होता है ) -नीचे-नीचे, तलेतले - अधोऽधो गंगेयं पदमुपगता स्तोकम् भर्तृ० २० १०, ( कर्मकारक के साथ) नीचे से नीचे ही नीचे-नवान घोऽधो वृहतः पयोधरान् शि० ११४ । सम० - अंशुकम् अधोवस्त्र, -- अक्षजः, विष्णु - अधस् दे० ऊपर, उपासनम् मैथुन, करः हाथ का नि चला भाग ( करभ ), करणम् आगे बढ़ जाना, हरा देना, अपमानित करना, - - खननम् अंदर-अंदर सुरंग खोदना, गतिः (स्त्री०), गमनम्, -पातः 1 नीचे की ओर गिरना या जाना, उतरना 2 अधःपतन, हार, -- ग (१०) चूहा, चरः चोर, जिह्निका उपजिह्वा ( मराठी में 'पडजीभ' कहते हैं ) — दिश (स्त्री० ) अधोबिन्दु, दक्षिण की दिशा, दृष्टि: (स्त्री ० ) नीचे की ओर देखना, पातः ' - गतिः दे० ऊपर, -- प्रस्तरः घास का बना आसन विलाप करने वाले व्यक्तियों के बैठने के लिए, भागः 1 शरीर का निचला भाग 2 किसी चीज का निचला हिस्सा-भुवनम्, लोकः - पाताल लोक, निम्नतर प्रदेश -मुख, वदन ( वि० ) नीचे को मुख किये हुए, लंब: 1 पंसाल, साहुल 2 खड़ी सरल रेखा, वायुः अपानवायु, अफारा, स्वस्तिकम् अधोबिन्दु |
अधस्तन ( वि० ) [स्त्री० नी ] [ अवस् + ट्यु, तुट् च ] निचला, निम्न स्थान पर स्थित ।
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