________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अननुमत, अस्वीकृत, अवैध,-ठं 1 अदृश्य 2 नियति | अपर (वि०) [ अद्+क्मरच् ] बहुत अधिक खाने वाला, भाग्य, प्रारब्ध (शुभ या अशुभ) 3 गुण तथा पेटू । अवगुण जो कि सुख तथा दुःख के अनुवर्ती कारण हैं; | अब (वि.) [अद्+यत् ] खाने के योग्य-यम् भोजन, 4 दैवी विपत्ति या भय (जैसा कि आग या पानी
खाने के योग्य पदार्थ, (अव्य.) आज, इस दिनआदि से)। सम०-अर्थ (वि.) आध्यात्मिक या गढ
अद्य त्वां त्वरयति दारुणः कृतान्तः-माल. ५।२५, अर्थ वाला, आध्यात्मिक,---कर्मन् (वि.) अव्यावहा
रात्री-आज की रात, यह रात । सम०-अपि अभी, रिक, अनुभवहीन -फल (वि.) जिसके परिणाम
अब तक, आज तक, अभी नहीं, -गुरुः खेदं खिन्ने अदृश्य हों,-फलं शुभाशुभ कर्मों का आगे आने
मयि भजति नाद्यापि कुरुषु-वेणी .१२११; वाला फल ।
(चौरपंचाशिका के ५० श्लोक 'अद्यापि' से आरंभ अदृष्टिः (स्त्री०) [न० त०] बुरी या द्वेषपूर्ण दृष्टि, कुदृष्टि होते हैं),-अवधि (अव्य०) 1 आज से लेकर, 2 आज -ष्टि (वि.) [न.ब. अंधा।
तक–पूर्वम् पहले, अब, प्रभूति (अव्य.) आज से, अदेय (वि०) [न० त०] जो देने के लिए न हो, जो दिया इस दिन से लेकर, अद्य प्रभूत्यवनतांगि तवास्मि दासः
न जा सके या दिया न जाना चाहिए,-यम जिसका ---कु. ५।८६,-श्वोना (वि.) आसन्नप्रसवा, बह देना न उचित है और न आवश्यक है, इस श्रेणी स्त्री जिसका प्रसव काल निकट है-अद्यश्वीनामवष्टम्ये में पत्नी, पुत्र, धरोहर और कुछ अन्य वस्तुएँ -~-पा० ५।२॥१३॥ आती है।
अद्यतन (वि.) (स्त्री० -नी) [अद्य+ष्टघु, तुट् च] अदेव (वि.) [न० त०] 1. जो देवताओं की भांति न हो, आज से संबंध रखते हुए, संकेत करते हुए या विस्तृत
या दिव्य न हो 2. देवविहीन, अपवित्र, अधार्मिक-वः होते हए; 2 आधुनिक;-नः चाल दिन, यह दिन, चाल जो देवता न हो। सम-भातक (वि०) जहाँ वर्षा दिन की अवधि, दे०'अनद्यतन' भी,-नी (अर्थात बत्तिः) न हुई हो; माता की भांति दूध पिलाने या पानी देने लुङ लकार का नाम (=भूतः)। के लिए जहाँ वर्षा का देवता काम न करता हो,- अद्यतनीय अद्यतन 1 आज का 2 आधुनिक । वितन्वति क्षेममदेवमातृकाश्चिराय तस्मिन्कुरवश्चका- अदम्यम्-[न० त०] तुच्छ वस्तु, निकम्मा पदार्थ; नातव्ये सते-कि० १।१७।
विहिता काचित्क्रिया फलवती भवेत्-हि०प्र० ४३; अवेशः [न० त०] 1. अनुपयुक्त स्थान 2 बुरा देश । सम० निकम्मा या अकर्मण्य छात्र या विद्यार्थी।
-काल: अनुपयुक्त स्थान और अनुपयुक्त समय, स्थ | अनिः--[अद्+क्रिन् ] 1 पहाड़ 2 पत्थर 3 बज 4 वृक्ष (वि.) अनुपयुक्त स्थान पर ठहरा हुआ, उपयुक्त
सूर्य 6 मेघ-राशि, बादल 7 एक प्रकार का माप 8 स्थान से विरहित।
सात की संख्या। सम-शिः,-नाषः,-पतिः, अवोष (वि०) [न० ब०] 1 दोष, बराई और टि आदियों -राजः आदि, 1 पर्वतों का स्वामी, हिमालय 2 शिव
से मुक्त 2 अश्लीलता, ग्राम्यता आदि साहित्य के (कैलाशपति) --कीला पृथ्वी-कन्या, सनया,दोषों से मुक्त, दे० दोष,-अदोषौ शब्दार्थो-काव्य नंदिनी, सुता आदि पार्वती,-जम् लाल खड़िया, १, अदोषं गुणवत्काव्यम्-सर० क.१।
-द्विष,-भिद् (पुं०) पहाड़ों का शत्रु या उन्हें तोड़ने अदोहः [न० ब०] 1 वह समय जो दोहने के लिये व्यावहा- वाला, इन्द्र का विशेषण;-व्रोणि-णी (स्त्री०) 1 पहाड़ रिक न हो 2 [न० त०] न दुहा जाना।
की घाटी 2 पर्वत से निकलने वाली नदी-पतिः,-राजः अढा (अव्य.) 1 सचमुच, बिल्कुल, अवश्य, निस्सन्देह
आदि, देखिये °ईश, –शय्यः शिव, -श्रृंगम्, रघ० १३१६५; 2 प्रकटतः, स्पष्टरूप से च्यालाधिप
-सानु पहाड़ की चोटी, सारः पहाड़ों का सत्त्व, च यतते परिरब्धुमद्धा---भामि० ११९५ ।
लोहा। अदभुत (वि.) [अद+भ+इतच-न भूतम् इति वा] | अबोह:---[न० त०] द्वेषराहित्य, बुराई का न होना परि
आश्चर्यजनक, विचित्र, कर्मन, गंध, दर्शन, रूप; | मितता, मृदुता--मनु० ४।२। गूढ, अलौकिक; - 1 आश्चर्य, आश्चर्यजनक बात | अन्य (वि.) [ नास्ति द्वयं यस्य न० ब०] 1 दो नहीं, 2 या घटना, विलक्षण घटना, चमत्कार 2 अचम्भा, अद्वितीय, अनुपम, एकमात्र,-यः बुद्ध का नाम, अचरज, आश्चर्य (०) भी;--त: आठ या नौ ---यम् [न० त०] द्वैत का अभाव, एकता, तादात्म्य, रसों में से एक, अद्भुत (अनोखा) रस । सम-सारः विशेषतया ब्रह्म और विश्व का तादात्म्य या प्रकृति और
-खदिर या खैर की आश्चर्यजनक राल,-स्वनः आत्मा का तादात्म्य, परम सत्य । सम०-वाबिन (= शिवका नाम ।
अद्वैत) 1 विश्व और ब्रह्म तथा प्रकृति एवं आत्मा के मधनिः-[अद्+मनिन् ] अग्नि ।
तादात्म्य का प्रतिपादक 2 बुद्ध।
For Private and Personal Use Only