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( २२ ) शत्रु-नाश के लिए अनेक अमंगलप्रार्थनाएँ और अपनी | अवशेनं [न० त०] 1. न दिखना, अनवलोकन, सुरक्षा के लिए तथा विपत्ति, पाप, बराई, एवं | अनुपस्थिति, दिखाई न देना 2. (व्या०) अन्तर्धान, दुर्भाग्य से बचाव के लिए असंख्य प्रार्थनाएं पाई। लोप, लुप्ति --अदर्शनं लोपः पा० १२११६० । जाती है, इसके अतिरिक्त दूसरे वेदों की भांति
अवस् (सर्व०) [ पुं०-स्त्री०-असो, नपुं०-अवः] वह इसमें भी धार्मिक एवं औपचारिक संस्कारों में प्रयुक्त
(किसी ऐसे व्यक्ति या वस्तु की ओर संकेत करना होने वाले अनेक सूक्त हैं जिनमें प्रार्थनाओं के साथ
जो अनुपस्थित हो या वक्ता के समीप न हो)-इदमस्तु साथ देवताओं का अभिनन्दन किया गया है। सम०
सन्निकृष्टं समीपतरवति चैतदो रूपम । अदसस्तू विप्र-निषिः,-विद (0) अथर्ववेद के ज्ञान का भंडार,
कृष्टं तदिति परोक्षे विजानीयात् । 'यह' 'यहां' 'सामने' अथवा अथर्व-ज्ञान से संपत्र-गुरुणा अथवंविदा कृत
अर्थ को भी प्रकट करता है। 'यत्' के सहसंबंधी क्रिय:-रघु. ८४, ११५९ ।।
'तत्' के अर्थ में भी प्रायः प्रयुक्त होता है। परन्तु जब अपर्वणिः [अथर्वन् +इस्, न टिलोपः] अथर्ववेद में निष्णात
कभी यह 'संबंध वाचक सर्वनाम' के तुरन्त बाद प्रयुक्त अथवा इसमें निर्दिष्ट संस्कारों के अनुष्ठान में कुशल
होता है (योऽसौ, ये अमी आदि) तो इस का अर्थ होता ब्राह्मण।
है 'प्रसिद्ध 'सुख्यात' 'पूज्य'; दे० तद् भी । अथर्वानं [अथर्वन् +अच्-पृषो० दीर्घः] अथर्ववेद की अनु- अदात (वि०) [न० त०]1 न देने वाला, कृपण 2 लड़की ष्ठान पद्धति।
का विवाह न करने वाला। अपवा=दे० 'अथ' के अन्तर्गत ।
अदादि (वि०) [न० ब०] दूसरे गण की धातुओं का बद (अदा० पर० सक० अनिट) [ अत्ति, अन्न-जग्ध ] 1.
समूह, जो 'अदृ' से आरम्भ होता है। साना, निगलना, 2. नष्ट करना 3. दे० 'अंद', प्रेर)
| अदाय (वि.) [नास्ति दायो यस्य-न० ब०] जो खिलवाना, सन्नन्त० जियत्सति–खाने की इच्छा
(संपत्ति में) हिस्से का अधिकारी न हो। करना।
अवायाद (वि.) [न० त०11. जो उत्तराधिकारी न बन मद, अब (वि.) [ मद्+विप्, अच् वा ] (समास के
। सके, 2. [२० ब०] जिसके कोई उत्तराधिकारी न हो। अंव में). खाने वाला, निगलने वाला।
| अदायिक (वि.) [स्त्री०-अदायिकी ] [ न दायमर्हतिअबष्ट (वि०) [न.ब.] दन्तहीन,--ष्ट्रः वह सॉप ना+दाय+ठक न० ब०] 1 जिसका कोई उत्तराजिसके जहरीले दांत तोड़ दिये गये हैं।
धिकारी दावेदार न हो, जिसके कोई उत्तराधिकारी अवक्षिण (वि.) [२० त०] 1. जो दायां न हो अर्थात्
न हों,--अदायिकं धनं राज्यगामि-कात्य2 [न० बायां 2. जिसमें पुरोहितों को दक्षिणा न दी जाय,
त०] उत्तराधिकार से संबंध न रखने वाला। बिना दक्षिणा का (जैसे यज्ञ ) 3. सरल, दुर्बलमना, |
अदितिः (स्त्री०) [दातुं छेत्तुम् अयोग्या-दो+क्तिन् ] 1 मूर्ख 4. अनुपस्थित, अदक्ष या अपटु, गवार, 5. पृथ्वी 2 अदिति देवता, आदित्यों की माता, पुराणों में प्रतिकूल।
इसका वर्णन देवों की माता के रूप में किया गया है, अवश्य (वि.)[न० त०] 1. दण्ड का अनधिकारी, 2.
3 वाणी 4 गाय । सम० --जः, -नंदनः देवता, दण्ड से मुक्त या बरी।
दिव्य प्राणी। अबत् ( वि.) [ न० ब.] दन्तरहित, बिना दांतों का। अवर्ग (वि.) [न० त०] 1 जो दुर्गम न हो, जहाँ पहुँचना मदत्त (वि.) [न० त०] 1. न दिया हुआ 2. अनुचित | कठिन न हो 2 [न० ब०] वह स्थान जहाँ किले न
तरीके से दिया हुआ 3. जो विवाह में न दिया गया | हों-विषय:-एक दुर्गरहित देश । हो,-सा अविवाहित कन्या-तं वह दान जो रद्द कर | बदूर (वि.) [न० त०] 1 जो दूर न हो, समीप (काल दिया गया हो। सम०-आदायिन् (वि०) जो न दी और देश की स्थिति से),-रं सामीप्य, पड़ोस हुई वस्तुओं को उठा कर ले जाता है जैसे कि चोर, –बसन्नदूरे किल चन्द्रमौले:-रघु०६।३४; त्रिंशतो
-पूर्वा वह कन्या जिसकी सगाई न हुई हो-अदत्त दूरे वर्तते इति अदूरत्रिंशा:--सिद्धा०; अदूरे-म्-त:/पूर्वेत्याशंक्यते-माल०४।।
रात,-रे,-रेण (सम्प्रदान या संबंध के साथ), अधिक भवन्त (वि.) [न.ब.] 1. दन्त रहित 2. वह शब्द दूर नहीं, बहुत दूर नहीं।
जिसके अन्त में 'अत् या 'अ' हो,-सः जोंक। | अवृश् (वि.) [ नास्ति दृग् अक्षि यस्य न० ब० ] दृष्टिअवन्त्य (वि०) [न० त०] 1 जो दांतों से संबंध न रखता हीन, अंधा।
हो 2 दांतों के लिए अनुपयुक्त, दांतों के लिए हानि- | अदृष्ट (वि०) [ना-दृश्+क्त ] अदृश्य, अनदेखा, कारक।
पूर्व जो पहले न देखा गया हो; 2 अननुभूत 3 मात्र (वि.) [न० ब०] अनल्प, प्रचुर, पुष्कल। अदृष्टपूर्व, बनवलोकित, बिना सोचा हुआ, अज्ञात 4
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