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१२-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
समान है या नही ? इसी प्रकार अन्यान्य कर्य भी ऐसे किये जाते है, जिनमे बुद्धि की हीनता प्रकट होती है और साय ही साथ शरीर की, स्वास्थ्य को, धन की और धर्म की भी हानि होती है। फिर भी लोग इस ओर लक्ष्य नही देते । अनुप्रेक्षा करने से विवेकवुद्धि जागृत होतो है और विवेकबुद्धि की जागृति के फलस्वरूप हानिक रक वस्तुओ का त्यागने का विचार उत्पन्न होता है सूत्रार्थ का चिन्तन अर्थात् अनुप्रेक्षा करने से विवेकवुद्धि जागृत हातो है ।
साधारणतया अनुप्रेक्षा के अनेक अर्थ होते हैं, मगर यहां स्वाध्याय के साथ सम्बन्ध होने के कारण अनुप्रेक्षा का अर्थ है तत्त्वविचार करना । भगवान् से प्रश्न किया गया है कि अनुप्रेक्षा करने से अर्थात सूत्रार्थ का चिन्तन करने से जोव को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है-अनुप्रेक्षा करने से अध्यवसाय को विशुद्धि होती है और उसमे आयु कम के सिवाय शेष सात कर्मों की गाढ़ी वन्धी हुई प्रकृतियाँ गियिल हो जाती है । कदाचित् निकाचित् कर्म का बन्धन हा तो वह भा शिथिल हो जाता है।
टीकाकार का कथन है कि अनुप्रेक्षा निकाचित् कर्म को भी अपवतनाकरण के योग्य बना देती है। कारण यह है कि अनुप्रेक्षा स्वाध्याय का एक अग है और स्वाध्याय अन्तरग तप है । तप मे निकाचित् कर्म का बन्धन भो शिथिल हा सकता है । अतएव अनुप्रेक्षा निकावित कर्म को भी इस प्रकार शिथिल कर डालती है, जिससे वह कर्म अपवर्तनाकरण के योग्य बन सकता है । इस तरह अनुप्रेक्षा से गाढ़