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८-ग्रन्थकर्तृसंक्षिप्त-जीवनम् ।
शायद ही कोई सौन्दर्योपासक एवं इतिहासप्रेमी ऐसा मानव होगा जिसके कर्ण-पट पर सर्वाङ्गीण सुन्दर भोपाल नगर की कीर्तिका यश-घोष न पड़ा हो ? । इस नगरमें सरलस्वभावी गंगाराम नाम के मालाकार रहते थे । मथुरा नाम की उनकी भार्या थी जो गृह-कार्य में चतुर तथा आज्ञाकारिणी थी । संवत् १९४० की अक्षय तृतीया सोमवार को जीवननायक का जन्म हुआ । यथा गुणानुसार उसका बलदेव नाम रक्खा । उसके एक बड़े भाई भी थे जिसका नाम हमीरमल था जो अच्छे भ्रातृ-वत्सल थे।
बालवय से ही बलदेव का मन पढ़ने लिखने में तथा एकान्त बैठ शुभ विचार करने में खूब लगता था । भवितव्यता अपना प्रभाव अज्ञात रूप से ही प्राणिमात्र पर डालना प्रारम्भ करदेती है और प्राणी भी अज्ञात रूपसे उसी पथमें गमन करता है-जिसमें उसके लिये कुछ अज्ञात पदार्थ सन्निहित [ समीप ]
और उसका भाग्य-पदार्थ बनचुका है-सौभाग्यसे बलदेवका संसर्ग जैनधर्मानुयायियोंसे विशेष रहता था। शनैः शनैः जैनत्व की छाप उनके आत्म-पट पर पड़ने लगी । एक वार भोपालनिवासी पारखगोत्रीय सेठ केसरीमलजी के साथ आप विदेश को द्रव्योपार्जनार्थ रवाना हुए । मालवान्तर्गत खाचरोद नगर में