________________
श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। पूर्णमासे ततः शान्त्या, प्राच्यादित्यमिव प्रभुम् । कुक्षिशुक्तेः सुवेलायां, साऽसोष्ट सुतरत्नकम् ॥३२॥ गुणाष्टद्रव्यभूम्यब्दे, सप्तम्यां पौषशुभ्रके। सर्वे कुटुम्बिनो लोका,जहषुः सुखशान्तिकैः ॥३३॥ ज्ञातीनां भोजनं दत्त्वा, रसैः षड्भिः समन्वितम् । सोत्सवेन स पुत्रस्य, रत्नराजाऽभिधां ददौ ॥३४॥ सत्कार्यदानपुण्यादि-जिनपूजाप्रभावनाः । खसाधर्मिकवात्सल्यं, श्रेष्ठी चक्रे विवेकतः ॥३५॥
४ शैशवसद्गुणवर्णनम्शुक्लपक्षद्वितीयेन्दु-वदैधत सुखेन सः। सौभाग्यश्रीवरस्थानं, सतां शश्वच मुत्प्रदः ॥३६॥
फिर पूर्ण मास होने पर जैसे पूर्व दिशा सूर्य को जन्म देती है, वैसे ही उसने फॅख रूपी सीप से विक्रमाब्द १८८३ पौष सुदि ७ के रोज सुसमय में सर्व शक्तिशाली सुपुत्ररूप रत्न को जन्म दिया । अतएव सभी स्वकुटुंबके लोग सुखशान्ति पूर्वक अत्यन्त खुश हुए ॥ ३२ ॥ ३३ ॥ शेठने पुत्रका जन्मोत्सव सह स्वकुटुम्बियों को षद्स भोजन जिमाकर 'रत्नराज' नाम रक्खा ॥३४॥ और विवेकसे दान-पुण्य-जिनपूजा-प्रभावनादि सत्कार्य के साथ शेठने स्वसाधर्मिक वत्सल भी किया ॥ ३५॥