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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। परन्तु सम्यक्त्व कभी न छोड़ें, पर सहाय की अपेक्षा नहीं करें, किन्तु पाखंडियों के उपद्रवों को जिनशासनमें दृढ़ विश्वास होनेके कारण वे खुद ही हटा सकते हैं। अत्रैतस्यां जयं प्राप, जैनागमसदुक्तिभिः।। निर्ममे तत्र सिद्धान्त-प्रकाशग्रन्थमेषकः ॥ १८१ ॥ व्योमाग्निनन्दचन्द्राब्दे, जावरापत्तनेऽभवत् । श्रीआहोरे चतुर्मास्या-वभूतामस्य हेतुतः ॥१८२॥ जातिस्फोटस्तदाऽऽसीत्तं, भत्तवैक्यं कृतवानयम् । यतोऽतिश्रेष्ठलाभाय, जिनाज्ञास्ति जिनागमे ॥१८३॥
इस चर्चामें जैनसिद्धान्तोंके प्रमाण देनेसे आपश्रीकी ही विजय हुई, और इसी विषयिक अति सुन्दर 'सिद्धान्तप्रकाश' नामक ग्रन्थ भी रचा । फिर संवत् १९३० का चौमासा जावरामें, १९३१ और १९३२ ये दोनों चौमासे आहोरमें ही हुए, चातुर्मास ऊपर चातुर्मास क्यों किया ? जबाब-न्यातिमें बड़ा भारी क्लेश था उसको तोड़कर सम्प किया, वास्ते ऐसे अत्युत्तम लाभके लिये जैनसाधुओंको चौमासा ऊपर चौमासा करनेकी भी जिनागमोंमें जिनेश्वर भगवानकी आज्ञा है ।। १८१-१८३ ।।
१८-मोदराग्रामेऽरण्ये घोरतपस्याअन्यदा मोदराग्राम, विहरन्नागतो गुरुः । आशापुर्या गृहाऽभ्यर्णे, देव्याश्चारुवनान्तरे ॥१८४॥