Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 230
________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । १८७ दोय खमासमण देई इच्छकार पूछणा, साध्वीने ऊभा मत्थण वंदामि कहणा. (७) रत्नाधिक बिना सामेला प्रमुख करणा नहीं, आचार्य से उतार उपाध्यायका करणा, जय गुरुकी ही बोलणा, सबों की बोलणा नहीं. (८) रस्ता में श्रावकोंने साधु साथ नहीं चलणा, मार्ग दिखाय देणो, आगे पीछे रहे हुए, सामान्य साधु साथ तो जाणा ही नहीं. (९) जो साधु मर्यादा चूके उसका आदर सन्मान वंदनादि श्रावकोंने करणा नहीं, करेगा तो आज्ञा बाहिर है, संघको ठबको पावेगा, संसार वधावेगा. साधु साध्वी की मर्यादा इस मुजब सो लिखते हैं । (१) साधु-साध्वियों ने साथे मार्गमें विचरणा नहीं, कारण होय तो आचार्यने पूछने बृहत् व्यवहार मर्यादा प्रमाणे विचरे | (२) साध्वी होय जिण गाम में साधुने जाणा नहीं, कदी गया तो तीन दिन सिवाय रेणो नहीं, दोय माहिला एक दूसरे गाम चल्या जाणा.

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