Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। (९) वांदवा आवे जब सब जणी साथे आवे, तीन जणी
सुं वारंवार साधव्यो साधु कने आवे नहीं. (१०) साधु दोय जणा विना विचरे नहीं, साधव्यां तीन
जनी विना विचरे नहीं, आचार्य हुकुमसे न्यूना
धिक विचरे । (११) चौमासो आचार्यरा हुकुम बिना रहे नहीं, जो दूर
होय तो श्रावक कहे जद कहणा हुकुम होगा वहां
विचरांगा। (१२) श्राविकाने साधु भणावे नहीं, जो कोई श्राविका
जाणपणो पूछती होय तो श्रावक श्राविका सहित पद देणो पण एकलीने उपासरामें ऊभी राखणी नहीं, आलोयण लेवे तो बहु लोक की दृष्टीमें
बैठके देणी। (१३) साधु-साधवी अपणी नेत्रायें चेला चेली करणा
नहीं, आचार्य प्रवर्तिनीरी नेत्रायें करणा. (१४) बड़ी दीक्षा जोगविधि आचार्य विना न करणी,
आज्ञा देतो करणी। (१५) जो कोई साधु साधवी उलंठ होय आचार्यादिकने
असमंजस बोले तो तिणने आचार्य प्रवर्तिनीरा हुकम बिना गच्छ बाहिर काढणो नहीं.

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