Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 231
________________ १८८ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। (३) साध्वीने एकली साधु उपासरे ऊभी बैठी रेवा देणी नहीं। (४) साध्वीने उपासरे साधु जाय नहीं, कार्य होय तो बारे ऊभो खंखारो करे, पछे द्वारे ऊभो रही दृष्टि दे, जो प्रवर्तिनी होय तो तिसकुं जणाय पछे जाय, पांच जणा विना ऊभो रहे नहीं। (५) साध्वी कने ओघा प्रमुखांरो काम करावे तो सर्व सामग्री आप मिलाय देवे, साध्वीका लाया जलसे वस्त्रादि धोवावे नहीं। (६) साधवी लाया चार आहारमेंलो एक भी आहार लेणो नहीं। (७) साध्वियोंमें कोई भणवा वाली होय तो साधु भणावे नहीं प्रवर्तिणी तथा दूजी साधवी भणावे और प्रवर्तिणी तथा दूजी साधवी कने इतनो बोध न होय तो दृढ़ चित्तवालो साधु साधव्यांका राग विनारो होय तिण कने भणे, जो प्रवर्तिनी कहे भणावा, तो चार जणी प्रवर्तिनी सहित बैठके भणावे, हास्य वार्तादिक करे नहीं, घणी वार बैसे नहीं, (८) साधवी गोचरी लाई प्रवर्तिनीने दिखावे, साधुने दिखावारो जरूर नहीं।

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