Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 236
________________ शुद्धाऽशुद्धानि । शुद्ध पृष्ट अशुद्ध प्रसशंसुः प्रशशंसुः बहुना धोरं क्योंकि लेकिन बहुना त्वयैवो त्बयेवो महाराज महारान घोरं स्तथैवा तथैवा सफलीकर्तुं सकलीकर्तुं सादरेणा सादरणा सं० १९५५ आहोरके चौमासेमें, श्रीआहोरमें ७६ सं० १९५५ फाल्गुन फाल्गुन कौन कोन . शब शब्द वकवृत्ता शब्द सभी वकवृत्ता शब : समी . C.

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