Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 237
________________ पृष्ट ८६ पंक्ति ७ मी से नीचे मुजब पढें सं० १९५७ सियाणाके चौमासेमें श्रीसंघमें अतीव धर्मध्यान हुआ और शा. वन्नाजी धूपाजीकी ओरसे अत्युदार चित्तसे साडम्बर शास्त्रविधिके साथ ' श्रीवीसस्थानक ' जीका उद्यापन भी हुआ। यहा ८९ धर्मेालु धर्मेष्यालु ९१ १२ सं० १९६० के चातुर्मास चातुर्मास मैत्री . १०१ किया १०३ हुई ११२ यहाँ मैत्री साधुकी मुहुर्मुहुः अत्यन्त मञ्जुला ग्रन्थोंमें त्यका हि तस्मात्तत् शरीरका साघुकी मुहर्मुहुः ११८ त्यन्त मला १२५ ग्रन्थोमें १२७ त्यक्ता १३३ तस्माऽत्तत् १४० शरीरको १४१

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