Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 235
________________ १९२ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। श्राविका जाण जाय ने वांदे तो आणा बाहिर, पुस्तक न उपड़े तो भंडारमें मेलणा, अपणी नेश्रा न रखणा, “उपगरण १४ माहिला न मेलणा. (२५) उपकरणरो जो प्रमाण कह्यो है उस प्रमाण मुजब रखणा पण लंबा चौड़ा अधिक न रखणा. इतनी मर्यादा श्रावक लोग जानते रहणा और हेत महोबत छोड़ साधु लोग न पाले जिनोंको कहते रहणा, और कोई साधु साधवी शंका घाले समा चारीका २५ वचनोंमें तो मानणा नहीं, ये पचवीस बोल सब शास्त्र प्रमाणे हैं, कितनेक काल महातम देख कहे हैं, सो इनोंका सिद्धान्त-पाठ पीछे लिखा जायगा, और जो समाचारी प्रतिक्रमण आदि चैत्यवंदन करते हो तथा चैत्यमें करते हो वो ऊपर लिखे प्रमाणे करणा संवत् १९५६ का भाद्रवावदि ५ शुक्रवार के प्रभातसे शुरु करणा ॥श्रीवीरप्रभुशासन जयवंत वत्तौ ।। इति ॥

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