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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। सूर्योदय' इन दो पुस्तकोंके द्वारा जानना चाहिये ॥३४८॥ बाद सं० १९६१ कूकसीके चातुर्मासमें आचार्यवर्यने छन्दोमय प्राकृतव्याकृति' नामक ग्रन्थ बनाया ॥ ३४९ ।।
३१--श्रीउदयसिंहभूपस्य गुरौ भक्तिःश्रीझाबुवानरेशेनो-दयसिंहेन सन्नराः । अत्र विज्ञप्तिपत्रेण, प्रेषिता गुरुसन्निधौ ॥३५० ॥ भवतो बहुकालान्मे, दर्शनेच्छा प्रवर्तते । करुणादानवद्भिवों, दर्शनं देयमाशु वै ॥३५१ ।। चतुर्मासीसमात्यन्ते, तिथिशिष्यैः समन्वितः। झावुवापत्तने चागाद्, विहृत्य धर्मवृद्धये ॥ ३५२ ।। कुर्वाणैरुत्सवैर्भूप-संधैः स प्राविशत्पुरम् । तद्धर्मदेशनां श्रुत्वा, भूपसंघावहृष्यताम् ॥ ३५३ ।। व्याख्यानेऽनेकशोराजा, धर्म श्रोतुमयादसौ। अन्यस्मिन्समयेऽज्ञीप्सत्, धर्मकर्माणि हर्षतः॥३५४ ___एक समय झाबुवाके नरेश श्रीउदयसिंहजीने अपनी ओरसे विज्ञप्ति पत्र सहित प्रधान पुरुषोंको गुरुके पास भेजे ।। ३५० ।। उसमें यह लिखा था कि-मुझे बहुत समयसे आपके दर्शनकी पूर्ण इच्छा लग रही है वास्ते दयाशील! आपश्रीको शीघ्र एक वक्त दर्शन देना चाहिये ॥३५॥