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श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी । देशदेशान्तरेऽप्येवं, धर्मकृत्यप्रभावनाम् । तद्गुणाकर्षितः संघ-चक्रे पूजोत्सवादिकम् ॥ ४ ॥
संवत् १९९३ माघशुक्ला ७ को श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने अरिहन्त, सिद्ध, सुसाधु और केवली भाषित जिनधर्म इन चार का शरण लेकर खुख समाधि पूर्वक श्रीआहोर नगर (मारवाड़) में स्वर्ग को प्रयाण किया । आपका स्वर्ग गमन सुनकर अन्य ग्रामोंसे भी बहुतसे संघ समुदाय आये और सकल श्रीसंघने अत्याडम्बर से सविधि भक्ति पूर्वक सूरीश्वरजीकी अग्निसंस्कारादि क्रिया की । उसके बाद श्रीसंघकी ओरसे गुरुभक्तिके निमित्त दो अष्टाहिक महोत्सवके साथ दो स्वामिवात्सल्य भी हुए और अनुकंपया दीन हीन अपंगादि दुःखी नर समूहको अन्न वस्त्रादि तथा पशुओंको चारा पानी आदिसे बहुत ही सहायता पहुँचाई गई । इसी प्रकार आप त्रीके शान्तस्वभाव, सरलता, विद्वचादि अनेक सद्गुणाकर्षित मरुधर, गुर्जर, मालवा, आदिक स्वपरदेशों में भी अष्टाहिक महोत्सव पूजा प्रभावनादि पुण्य कृत्य किये गये ।। १-२-३-४ ॥
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पट्टेऽस्य निर्मलमतेः ससुखं हि यस्य, चाssहोरसंघसकलेन कृतोऽभिषेकः । पञ्चाङ्कभक्तिधरणौ शुभराधमासे,
पट्टस्य युक्तिसुमहः सितदिक्तिौ च ॥५॥