Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 223
________________ १८० श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। लड़का मर गया । इस प्रकार गुरुका प्रत्यक्ष ज्ञानवल देखकर वहाँके श्रावक लोग आदि अतीव चमत्कार को प्राप्त हुए और गुरुके विशिष्ट ज्ञानकी एक मुखसे प्रशंसा करने लगे ॥ २ ॥ गुरुश्रीने ध्यानबलसे मेघवृष्टिका होना तो कइएक वार बतलाया था, जैसे-शिष्यो ! आज रात्रिमें ध्यानस्थ मैंने क्षेत्रोंमें व अरण्यों में स्थान स्थान पर जल ही जल देखा, दूसरे दिन वैसाही हुआ देखकर शिष्योंने अपने आत्मामें महान् आश्चर्य मानकर गुरुमहाराजके ध्यानमाहात्म्यका परस्पर खूब ही वर्णन किया ॥३ ।। संवत् १९५८ की साल गाँव सियाणामें स्वशिष्य मण्डल सह आपश्री २४ देहरियों में स्थापन करने के लिये चौवीस जिनेश्वरोंकी अञ्जनशलाका-प्रतिष्ठाके महोत्सवमें विधिविधानके लिये मण्डपमें विराजमान थे, उस वक्त वहाँ अन्दाजन ६०-७० हाथ ऊंचा मिट्टीके ढेलोंका मेरु पर्वत चुना जा रहा था, लेकिन वह नीचेसे गीला होने के कारण और उसके ऊपर कर्मकर आदिकोंका अतिशय भार आनेसे एकदम डिगनेसे ५-७ कर्मचारी-स्त्री पुरुष नीचे दर गए, इतनेमें किसी श्रावकने कहा गुरुदेव ! मेरुपर्वतके खिसकनेसे उसके नीचे ५-७ जन मर गये, ऐसा सुनते ही गुरुश्रीने अपने स्वरोदयादि ज्ञान बलसे कहा जाओ एक भी नहीं मरा, अब तुम उन्हें जल्दीसे निकालो, यह गुरुमुखसे सुवाक्य सुनकर शीघ्र ही निकाले गये तो मणोंबन्ध ऊपर बोझा आनेपर भी चोटके सिवाय

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