Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 226
________________ १८३ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। श्रावकोंको सम्यक्त्व युक्त द्वादश व्रतधारी बनाकर उन पर अनेक प्रकारके असीम महोपकार करके अपना नरभव सफल किया और गुरुश्रीके सदुपदेशसे नाना प्रकारके व्रतोंके उद्यापन आदि धर्मके कार्य तो स्थान स्थान पर बहुत ही हुए हैं सो उनका कुल वृत्तान्त जिज्ञासुओंको गुरुश्रीके सविस्तर चरित्रसे जानना चाहिये । ___अब अन्तिमावस्थामें सब प्राणियों पर वैरभाव रहित धर्मध्यानमें लवलीन जिनेश्वर देवका और स्वगुरुदेवका अच्छीतरह जाप जपते हुए सुखसमाधि पूर्वक ८४ लक्ष जीवयोनिको क्षमाकर चारों आहारोंका त्याग कर और चार शरणा अंगीकार करके संवत् १९६३ की साल मालवा देशान्तर्गत श्रीराजगढ़ नगरमें पौष सुदि सप्तमीके रोज जैनश्वेताम्बरार्य-श्रीश्रीश्री१००८श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वजी महाराज सभी बातोंकी ममता रहित विनाशशील इस शरीरको छोड़कर देवलोक पधारे ॥ ८॥ किं सिन्धोःसलिलस्य कोऽपितुलनांकुर्यात् प्रवक्तुं ह्यलं, नैवं तदुरुराजकस्य सकलोदन्तं गुणौघस्त्वयम् । आहोरे गुरुभक्तितोऽष्टकमिदं सर्वेष्टदं निर्मितं, खाङ्काकेन्दुमिते 'गुलाबविजयो' वक्तीति संघं मुदा॥९॥ इस संसारमें कोई भी मनुष्य समुद्र के पानीका माप करनेके लिये क्या समर्थ हो सकता है ? नहीं २ कभी नहीं,

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