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श्रीराजेन्द्र गुणमञ्जरी ।
इसी प्रकार उन गुरुमहाराजके कुल गुणोंका वृत्तान्त कहनेके लिये मेरे सदृश नर कभी समर्थ नहीं हो सकता, तथापि इस कलियुग में गुरुमहाराज अति प्रभावशाली, महायशस्वी, महौजस्वी, गुणसागर, चमत्कारी, और वाक्यसिद्ध, पूज्य - सूरि-रत्न हुए हैं। वास्ते वर्तमान समय में भी गुरुमूर्तियोंकी निर्मल परिणामसे आस्था पूर्वक नाना प्रकारकी बोलमा बोलकर भक्ति सेवा करने वाले अनेक जैन जैनेतर भक्त लोक अपने २ मनोवांछित फलको प्राप्त हो रहे हैं, वे कतिपय गुरुमूर्तिस्थान इस प्रकार हैं-स्वर्गमनस्थान मालवा देशान्तर्गत-शहर
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राजगढ़, ' एवं - खाचरोद, रतलाम, आलीराजपुर, कूकसी, गणोद, बड़नगर, जावरा, मन्दसोर, निम्बाहेड़ा. दशाई, उत्तर गुजरात - थराद, और मारवाड़ में - आहोर, सियाणा, बागरा, हरजी, आदि कई स्थानों में भक्त लोग प्रतिवर्ष हजारों श्रीफल आदिका प्रसाद [सीरणी] चढ़ाते हैं एवं सैंकड़ों रुपयोंकी आमदनी भी होती है, और गुरुश्रीके नामका छन्द सुनने से ज्वरादिकों का कष्ट भी नष्ट होजाता है । वाचकगण ! इस तरहसे गुरुश्रीके प्रसिद्ध अनेक गुणोंके उदाहरण हैं परन्तु यहाँ स्वल्पमात्र में ही गुरुवर्यकी भक्तिसे सबको मनोवांछित देनेवाला यह अष्टक संवत् १९९० पौष सुदि सप्तमीके रोज 'गुलाबविजय' नामक साधुने शहर आहोर में बनाया ऐसा यह मुनि सहर्ष श्रीसंघके प्रति कहता है ||९||