Book Title: Rajendra Gun Manjari
Author(s): Gulabvijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 224
________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । १८१ ५-७ में से किसीका कुछ भी नहीं विगड़ा, यह गुरु महाराजका अनहोनार पर वाक्यसिद्धि देखकर महोत्सवमें आये हुए हजारों लोग धन्यवादके जयारवोंसे गुरुश्रीको वधाते हुए ॥ ४ ॥ भो वाचकवृन्द ! इस प्रकार गुरुश्रीके अनेक उत्तम २ दृष्टान्त हैं लेकिन ग्रन्थवृद्धिके भयसे यहाँ नहीं लिखे हैं । और जिनके धर्मचर्चासे झाबुआ नरेश श्रीमान् उदयसिंहजी और सिरोहीनृप श्रीमान् केसरसिंहजी अति भक्त हुए थे ॥ ७ ॥ चीरोलापुरवासिनामुपकृति चारुं प्रचक्रे गुरुबोध्यैवं त्वपि गुर्जरादिविषये प्राज्यं व्रतोद्यापनम् । धर्मध्यानरतो जिनादिसुजपन् जीवेषु निर्वैरकं, स्वर्गेऽगाहुणषड्नवेन्दुकलिते यो राजदुर्गे सुखम् ।।८॥ __ढाई सौ वर्ष पहिले जाति बाहर किये हुए मालवादेशान्तर्गत-ग्राम चीरोला निवासी श्रीसंघको आपश्रीने दण्ड लिये विना ही न्यातिमें सामिल करवा कर उनका बड़ा ही सुन्दर महोपकार किया । इन चीरोला संघको न्याति बाहर करनेका कारण इस प्रकार है-चीरोला गांव के निवासी किसी एक धनाढ्य सेठकी लड़की बड़ी होगई थी लेकिन उसके योग्य वर नहीं मिलनेसे माता पिता बड़े ही चिन्तातुर थे, एक समय भावी योगसे सेठको पूछे विना सेठानीने घर बैठे ही शहर सीतामऊ निवासी किसी सेठके लड़केसे सगपन करदिया, एवं सेठने भी शहर रतलाममें आकर सेठके पुत्रसे

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