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श्रीराजेन्द्र गुणमञ्जरी ।
सत्प्रार्थनामयमिमामकरोत्सुभावाद्, गच्छप्रबन्धरुचिरं सुमुने ! विधेयम् ।
सद्बुद्धिकोविदगुणेन विराजितात्मा, जीयात्स चात्र विजयाद्ययतीन्द्रसूरिः ॥ ६ ॥
उन विमल बुद्धिमान साहित्यविशारद - विद्याभूषणजैनाचार्य श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजके पाट पर संवत् १९९५ वैशाखशुक्ला दशमी के दिन शुभ मुहूर्त्त में स्वपरदेशीय - चतुर्विध श्रीसंघ युक्त श्रीआहोर नगरके सौधर्म बृहतपोगच्छीय- समस्त श्रीसंघने व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्याय श्रीमद्यतीन्द्रविजयजी महाराजका बड़े ही समारोहके साथ पट्टाभिषेक महोत्सव किया और उस मौके पर उत्तम भावसे श्रीसंघने प्रार्थना की कि - हे मुनीश्वर ! सर्व प्रकारसे गुरुगच्छका सुन्दर प्रबन्ध करें । उस विज्ञप्तिको सादर स्वीकार की | अतः सुबुद्धिशाली विद्वत्तादि गुणोंसे शोभित वे श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरिजी महाराज जयवन्त रहें ।। ५-६ ।।