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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। कईएक ऐतिहासिक, प्रश्नोत्तरात्मक, वैराग्यरसोत्पादक, चर्चात्मक और संगीतरसका अपूर्वानन्द देनेवाले भी हैं, बुद्धिमानी के साथ गुरुश्रीने इस प्रकार अनेक ग्रन्थ बनाये हैं ॥ ६३४-६३६ ॥ मार्गशीर्षसितोष्टम्यां, प्रियालाधो जनबजे । लघुदीक्षागुरुर्मेऽभूद्, भीनमाले महोत्सवैः ॥६३७॥ दिनक्षपाऽऽश्रमेणैव, परोपकारिणा मुदा। साधुक्रियाकृतीचक्रे, लोकद्वयहितेच्छया ॥६३८||
पट्टेऽस्य सौभाग्यगुणांशुमाली, शास्त्रेषु सर्वेष्विति बुद्धिशाली।
सौधर्मगच्छे बृहदन्वितेऽस्मिन् , भूपेन्द्रसूरि वि राजतेऽसौ
॥६३९॥ जो संवत् १९५४ मगसिर सुदि अष्टमीके रोज मरुधरदेशीय शहर भीनमाल मारवाड़ में अष्टाहिक-महोत्सबके साथ अति प्राचीन रायणवृक्षके अधो भागमें ५००० हजार जनताके अन्दर मेरे लघुदीक्षोपसंपद् गुरु हुए और दिन रातमें बड़े ही परिश्रमके साथ उभय लोक सुधारनेकी चाहसे सहर्ष इन परोपकारी गुरुश्रीने मुझे कुल साधुके क्रियाकाण्डमें कुशल बनाया। इन श्रीविजयधनचन्द्रसूरिजीके पाट पर सौभागी गुणोंसे सूर्यके समान तेजस्वी सब शास्त्रों में अति प्रज्ञाशाली सौधर्मबृहत्तपागच्छमें साहित्यविशारद-विद्याभूषण-श्वेताम्बर