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.१०८ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। करते कराते समय मरें तो उनकी यतना (छूट) है, इससे ५ विश्वाकी दया बाँकी रही, उसमें भी निरपराधीको नहीं मारें और सापराधीके लिये यतना है, इससे ढाई विश्वा ही दया बाँकी रही । सापराधीको भी निरपेक्षा-विना प्रयोजनसे नहीं मारे याने सापेक्ष-प्रयोजनसे यतना है. इस कारण सवा विश्वाकी दया ही श्रावकोंके पालना संभव हो सकती है॥ ४०९ ॥ ४१०॥ श्राद्वानां स्वामिवात्सल्यं, कुतश्चोक्तं दयानिधे !। सुश्राद्ध ! भगवत्यङ्गे,श्राद्धैः शंखादिभिः कृतम् ।४११॥ साधर्मिक-तद्वात्सल्ययोर्माहात्म्यं शास्त्रेऽप्युक्तम्सर्वैः सर्वे मिथः सर्व-संबन्धा लब्धपूर्विणः। साधर्मिकादिसंबन्ध-लब्धारस्तु मिताः कचित् ।।१२। न कयं दीणुद्धरणं, न कयं साहम्मिआण वच्छल्लं । हियम्मि वीयराओ, न धारिओ हारिओ जम्मो।४१३।
भो दयानिधे गुरो ! श्रावकोंके साधर्मिकवात्सल्य करनेका अधिकार कहाँ कहा है ? उत्तर-हे सुश्राद्ध ! पंचमाङ्गभगवती सूत्र में शंखजी आदि सुश्रावकोंने साधर्मिकवात्सल्य
१-तएणं से संखे समणोवासए ते समणोवासए य एवं वयासी--तुझेणं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह, तएणं अम्हे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं