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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। बड़ा ही आश्चर्य है । इस कलियुगमें गुरुजीका ध्यान एक अनुपम ही है । एसा कहकर बड़े ही आश्चर्यताको प्राप्त हुए ॥ ४६७ ।। क्योंकि-गुरुने पहिलेसे ही कहा था कि उनके महोत्सवमें मोटी २ हरकतें पड़ेंगी सो निश्चयसे वैसे ही हुई ॥४६८॥ देखो हाथी उसका महावत और वनाजी मनाजी आदिका एवं गाव धणी-ठाकुर साहबका भी, स्वर्गवास होगया। ठीक ही है जो यथार्थ गुरुके वाक्यको नहीं मानते वे अति पश्चात्तापके भाजन ही होते हैं ॥ ४६९ ।। भूयो भूयो गुरोर्ध्यानं, तुष्टुवुस्ते मुदा तदा । तदिनात्तु गुरावस्मिन् , बहुश्रद्धां दधुस्ततः ॥४७०।। गुरोश्चैवमनेकेऽत्र, भोः ! प्रभावीयसूचकाः । उत्तमाः सन्ति दृष्टान्ता, ग्रन्थवृद्धलिखामि नो। ४७१॥ नैवात्र द्वेषभावेन, चैतद् वृत्तं मयोदितम् । केवलं तु सुभव्यानां, गुरुज्ञानं प्रदर्शितम् ॥४७२॥ __उस वक्त सहर्ष वे सभी शिष्य गुरुमहाराजके ध्यानकी वारंवार स्तुति करने लगे और उस दिन से वे गुरुदेवके प्रति अतीव श्रद्धालु हुए ॥४७० ।। भो! वाचकवृन्द ! यहाँ गुरुके इस प्रकार प्रभावके जाहिर करनेवाले अनेक उत्तम २ दृष्टान्त हैं, लेकिन ग्रन्थ बढ़नेके भयसे नहीं लिखता हूँ॥ ४७१ ॥ यहाँ यह वृत्तान्त मैंने द्वेष बुद्धिसे नहीं कहा है, किन्तु