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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । __सबसे पहले इन सबको मैं जिमाऊंगा, मृणोत कुलमें प्रसिद्ध चुन्नीलालजी भी इसी प्रकार बोले, इन दो जनोंने अपने घर पर उन्हें जिमाए । ३९३ ॥ उसके बाद संघने भी उन लोकोंके साथ जातीय संबन्धी सादी आदि कुल व्यवहार शुरू कर दिया । बाद उन लोगोंने भी सभी गाँवोंके संघको बुलाकर देवगुरुओंकी भक्ति पूर्वक आठ दिन महोत्सवोंके साथ संघके लिये आने जाने आदिका कुल खर्चा देकर अनेक प्रकारके भोजन आदिकोंसे आठ दिन तक अतीव भक्ति की । फिर अन्तमें श्रीफलादिक शुभ वस्तुओंसे सत्कार कर श्रीसंघको विदा किया ।। ३९४-३९६ ।। इस प्रकारके कठिन कार्य करने वाले वे गुरू कौन हैं ? ऐसा महान् आश्चर्य मानकर यहाँ अनेक ठाकुर आदि बड़े बड़े लोक ॥ ३९७ ॥ तदगुरोर्दर्शनार्थं च, हृष्टाः सन्तः समाययुः । दर्श दर्श शुभाचार्य, गृहीत्वा नियमान् गताः॥३९८॥ इत्थंकारेण ते सर्वे, जातिगङ्गासुपाविताः । मेनिरे गुरुवर्यस्य, यावजीवोपकारिताम् ॥ ३९९ ॥ सुकार्येणाऽमुना लोके, तेन लेभे महद्यशः । प्रागपि ग्रहणे जाता-वेतेषां साधुपुङ्गवाः ॥ ४०० ॥ तथा श्राद्धास्त्वने केऽपि, प्रायतन्त यथामति । नैवाऽलब्ध परं तेषां, सौभाग्यमपि कञ्चन ॥ ४०१॥