________________
श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी ।
७३
निष्कासितश्च संघोsपि, सिद्धाद्रेः श्रेष्ठिना मुना | उपदेशाद् गुरोर्द्रव्यं, प्राज्यं तत्र व्ययीकृतम् || २६४|| २४ गुरोरुन्नतिर्मगसी तीर्थ- संघनिर्गमश्च -- जावरांपत्तने चाssसी - चारुराष्टाहिकोत्सवः । रौप्यं विंशतिसाहस्रं, श्रीसंघेन व्ययीकृतम् ॥ २६५ ॥ दत्ता लुम्पकशिक्षा च, जाता धर्मोन्नतिः परा । रत्न पुर्यामपि ज्ञेयं, जावरावदुदन्तकम् ॥ २६६ ॥ श्राद्धानामयुतं चैयो, गुरुवन्दन हेतवे । पाखण्डिखण्डने जाते, व्यस्तृणोद्धि भवद्यशः ॥ २६७ निक्षिपेयो वेधूलि, पतेत्तदुपरीह सा । स्वनिष्यति तथा गर्त, यस्तस्मिन् स पतिष्यति ॥ २६८
फिर गुरुके उपदेश से उस सेठने सिद्धाचलजीका संघ भी निकाला और उसमें खूब धन खर्च किया ॥ २६४ ॥
सं० १९५३ जावरा चौमासा में तथा उसके हर्षमें श्रीसंघने सुन्दर अष्टाहिक महोत्सव किया उसमें वीस हजार रुपये व्यय किये ।। २६५ ।। यहां लुम्पकों ने अफण्ड खड़ा किया वास्ते उनको शिक्षा दी गई और धर्मकी उन्नति भी बहुत अच्छी हुई । १९५४ रतलाम में भी जावरा तुल्य ही कुल वृत्तान्त समझना ।। २६६ || इस चौमासा में गुरुमहाराजको वन्दन करनेके लिये दश हजार श्रीसंघ आए और