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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। किया ॥ २७६ ॥ गुणशाली गुरुमहाराजकी शुभ कृपासे श्रीआहोरमें जो जो उन्नति हुई उन सबको कहने के लिये कौन समर्थ हो सकता है ? ॥ २७७ ॥ गोडीपार्श्वबहिश्चैत्ये, द्विपञ्चाशत्सुमण्डिते । नवशत्याश्च बिम्बानां, यः साञ्जनशलाकया ॥२७८।। फाल्गुनेऽसितपञ्चम्यां, प्रतिष्ठां समचीकरत् । संघानांतत्र पञ्चाशत्-सहस्रे कापि न व्यथा ॥२७९॥ आद्य एव मरौ चाऽस्मि-नीदृशः सूद्धवोऽजनि । प्रभावो भवतामेष, लक्षं मुद्रा यदागताः ॥ २८० ॥ पुरेऽथ शिवगञ्जेऽस्मिन् , श्रीसंघहितकाम्यया । . पश्चत्रिंशत्समाचारीः, समयज्ञो बबन्ध सः॥२८१॥ सर्वसंधे प्रसिद्धाश्च, तथा मुद्रापिता अपि । श्रोतृज्ञप्त्यै स्वयं वाच्या, गोष्ठ्यांगुरुनिदेशगैः।।२८२।। . छोटे बड़े बावन जिनमंदिरोंसे सुशोभित श्रीगोड़ीपार्श्वनाथजीके जिनालयमें गुरुदेवने नव सौ जिनबिम्बोंकी फाल्गुन वदि ५ गुरुवारके रोज अञ्जनशलाका युक्त प्रतिष्ठा की। यहां पचास हजार जनसमुदाय एकत्रित होने पर भी किसीको कुछ तकलीफ नहीं पड़ी ॥ २७८ ॥ २७९ ॥ मारवाड़में ऐसा पहिला ही महोत्सव हुआ, जिसमें एक लाख रुपये मंदिरमें आए, यह कुल आपश्रीका ही प्रभाव है ।।२८०॥ बाद १९५६. का चौमासा शिवगंजमें हुआ, इसमें श्रीचतु