________________
श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। हे यतियो ! यदि वे प्राचीन श्रीपूज्य नवप्रकारकी गच्छ मर्यादामें चलें तो आत्माके कल्याणार्थ मैं तो क्रियोद्धार करनेवाला हूं॥११३।।।
श्रीविजयराजेन्द्रसूरिजी महाराजने पूर्व श्रीपूज्यजी को गच्छ की नव समाचारियां स्वीकार करवाई। वे क्रमशः ये हैं, १-संघ के साथ हमेशा प्रतिक्रमण करना, एवं व्याख्यान देना, पालखी आदि वाहनके विना ही दर्शनार्थ जिनमन्दिर जाना, यतियोंको यतियोग्य उप. करण के शिवाय सोना चांदी आदिके गहने नहीं पहिरना, स्थापनाकी पडिलेहन सदा करना, श्रीपूज्यको यंत्र मंत्रादि कर्म करना नहीं। २-व्यर्थ अधिक खरचा नहीं करना, घोड़े गाड़ीपर बैठना नहीं । ३-छुरी, तलवार, आदि शस्त्र नहीं रखना, भूषणका तो स्पर्श भी नहीं करना। ४-एकान्तमें स्त्रियोंके साथ वार्तालाप नहीं करना, नहीं पढाना, और उपदेश भी नहीं देना, नपुंसक, वेश्या, आदि कुसंगति नहीं करना ॥ ११४-११७॥ नोपदिशेत्त्यजेत्क्लीब-गणिकादिकुसङ्गतिम् । नो पेयं भङ्गगजादि,त्याज्यं नैशिकभोजनम् ॥११८॥ अप्रत्याख्यानिनं साधु, पलाण्डुलशुनाशिनम् । व्यभिचारेऽनिशं रक्तं, नो रक्षेद्यतिमीदृशम् ॥११९॥ वनस्पति सचित्तं नो, छिन्द्यादन्तान मार्जयेत् । न कूपादिजलस्पर्शी, पिवेदुष्णं सदा जलम् ॥१२०॥