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श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी ।
सामाइयं' इत्यादि सामायिक सूत्र कहे, फिर इरियावही पडिकमण करे | इत्यादि स्थान २ पर ऐसे अनेक पाठ हैं ।।
पात्राद्युपकरणानां, किंकरश्रावकादिभिः । न चाप्युत्थापयेदल्पं, प्रक्षालयेन्न वाससाम् || १६४|| स्वस्थाने च समानीतं, वस्त्रपात्राद्यनिच्छुकः । देशान्तरात्समानाय्य, ग्रहणं कम्बलादि नो ॥ १६५ ॥
( ८ ) अपने स्वल्प भी पात्रादि उपकरण नोकर व श्रावकादि से नहीं उठवाना, एवं उनसे वस्त्र भी नहीं धुलवाना, अपने निवासस्थान पर लाये हुए वस्त्र पात्रादि लेने की इच्छा नहीं रखना, परदेश से कीमती कम्बलादि मंगवाकर नहीं लेना ॥ १६४-१६५ ॥
नित्यपिण्डं परित्यक्तं, क्षारपिण्डं तथांशुके । परिधानं पटोपानत्, नोघाटास्येन भाषणम् । १६६ । कार्बुर रौप्यकफ्रेम - युक्तोपनयधारणम् । न च देयं गृहस्थानां, तद्वृत्ताढ्यं कचिद्दलम् ॥१६७|| एते सर्वेऽप्यनाचारा -लोकनिन्द्याश्च सर्वथा । या मोक्षार्थिनिर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीनामतोऽनिशम् । १६८ ।
एक ही घरका सदैव आहारादि नहीं लेना, विना कारण वस्त्रों में साबू सोड़ा आदि खारे पदार्थ नहीं लगाना, कपड़े के मौजे भी नहीं पहिनना, वार्तालाप, व्याख्यान आदि