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श्रीराजेन्द्र गुणमञ्जरी ।
(४) चैत्यवन्दन किये बाद शक्रस्तवादि प्रसिद्ध पांच दण्डक यानि-नमुत्थुणं०, अरिहंत चेड़०, लोगस्स ०, पुक्खरवर०, सिद्धाणंबु० तीन श्लोक प्रमाण तीन स्तुतियाँ और प्रणिधानप्रार्थना पाठ जब तक कहे जायँ तभी तक जिनमन्दिर में ठहरना चाहिये | इसके बाद किसी शुभ कारण वश सविधि अधिक ठहरने के लिये भी शास्त्रोंकी अनुमति हैं ।। १५४ ।। १५५ ।। शास्त्रोक्त्या साधुसाध्वीना-माद्यान्तिमजिनेन्द्रयोः । मानोपेतं सदा धार्य, जीर्णप्रायं सिताम्बरम् || १५६ || वस्त्रवर्णं च कल्कादि-पदार्थैः परिवर्तितुम् । कारणेन यदाज्ञप्तं, ग्राह्यमेव तदापदि कालेsस्मिन् कारणाभावा-त्सद्भिराद्रियते न तत् । शास्त्रगच्छविरुद्धत्वा-द्रञ्जनं न च धारणम् ॥ १५८ ॥ आवश्यके त्रिदेवीनां, कायोत्सर्गे स्तुतेस्तथा । द्वयशान्तिकपाठस्य, विधानं नैव युज्यते ॥ १५९ ॥
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(५) शास्त्रोक्त प्रमाणसे प्रथम - ऋषभदेव और अन्तिमवर्धमानस्वामी के शासन में साधु-साध्वियों को जैसा मिला वैसा सदैव प्रमाणबन्ध, जूनासा, स्वल्प कीमती, इन तीन विशेषणोंसे सफेद वस्त्र ही रखना चाहिये और शास्त्र में राजादिकों के उपद्रवादि कारणसे कल्कादि पदार्थों से वस्त्रका वर्ण बदलाने के लिये जो आज्ञा दी है, वह पूर्वोक्त विपत्ति कालमें ही ग्रहण करना चाहिये । लेकिन इस वर्त्तमान समय में वैसा