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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी।
१३ गुणीगण की गिनती के प्रारंभमें अकस्मात् जिसके नाम पर लेखिनी नहीं पड़े उस पुत्रसे यदि माता सुतवाली कही जाय तो वन्ध्या स्त्री कैसी होती है सो कहो ? ॥४७॥ रात्रिका दीपक चन्द्र, प्रभातका दीपक सूर्य, त्रिलोकका दीपक धर्म, ऐसे ही कुलका दीपक सुपुत्र है॥४८॥ दानमें, तपमें, शूरतामें, विद्यामें और धनोपार्जन करनेमें जिसका यश नहीं फैला, तो वह पुत्र केवल माताकी बड़ी शंका (विष्ठा ) रूप ही है" ॥ ४९ ॥ उनके सर्वोत्तम गुणों से मण्डित बड़ा भाई माणिकचन्द्र, व लघु बहिन प्रेमाबाई थी ॥ ५० ॥ सब वृत्तान्त कहाँ तक कहें ? कुल मनोहर ही था। जैसे कि-माता पित्रादि बड़े पुरुषोंके चरणकमलोंमें नमस्कार करना, उनकी
आज्ञामें व शुभाशीर्वादमें धर्म सुख मानना आदि चित्तवृत्ति बड़ी निर्मल और वैराग्यनिमग्न थी ।। ५१ ॥ ५२ ॥
पूज्यपुरुषों में उत्कृष्ट भक्ति, समस्त जनों के साथ मित्रभाव, गुणी, तथा ज्ञानी पुरुषों में अनुराग और श्रेष्ठ जनों की संगति में वह उत्तम लाभ मानता था ॥ ५३॥
५ धुलेवतीर्थयात्रा, परोपकृतिश्चत्रयोदशाब्द एवायं, यात्रां कर्तुमथान्यदा। धुलेवादिसुतीर्थानां, भ्रात्रा सार्धं चचाल सः ॥५४॥ मार्गेऽमरपुरस्थान-सौभाग्यमल्लकात्मजाम् ।..' डाकिन्याहितदोषेणा-ऽमोचयत्स स्वविद्यया ॥५५॥