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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी ।
॥२४॥
अस्त्यस्मिन् भारते क्षेत्रे, चतुस्त्रिंशत्कमीलके । आगरानगराद् दूरे, भरतादि पुरं वरम् महोत्तुङ्गगृहश्रेणी - सरः कूपादिमण्डितम् । सप्तविंशवकारैर्यत्, पुरर्ध्या च समन्वितम् ॥२५॥ तथैव शास्त्रेऽप्युक्तं पुरवर्णनम् -
वापी-वप्र-विहार-वर्ण वनिता वाग्मी वनं वाटिका, विद्वब्राह्मणवादिवारिविबुध वेश्यावणिग्वाहिनी । विद्या - वीर - विवेक-वित्त-विनया वाचंयमो वल्लिका, वस्त्रं वारण-वाजि-वेसरवराः स्युर्यत्र तत्पत्तनम् ||२६||
इसी दक्षिण भरतक्षेत्र में अछनेरा रेल्वे स्टेशन से १७ मील और आगरा नगर से चौंतीस मील दूर पश्चिम राजपूताना में एक उत्तम भरतपुर नगर है || २४ ॥ वह बड़े ऊंचे गृहों की पंक्तियों से व तालाब कूपादिकों से सुशोभित, और नगर की सुऋद्धि तथा सत्ताईस वकारों से युक्त है ।। २५ ॥ बावड़ी १, कोट २, देव - मन्दिर ३, चार वर्ण ४, सुन्दर स्त्रियाँ ५, चतुर वक्ता ६, वन ७, बागबगीचे ८, पण्डित ९, ब्राह्मण १०, वादी ११, जलस्थान १२, देवता १३, वेश्या १४, व्यापारी लोग १५, नदी व सेना १६, विद्या १७, वीरनर १८, विवेक १९, धन २०, विनय २१, मुनिराज २२, अनेक जाति की लताएँ २३, वस्त्र २४, हस्ती २५, घोड़े २६, और खच्चर गधे २७, इन सत्ताईस वकारों के नाम से वह भरतपुर अति सुशोभित है || २६ ॥