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होचुका था, अतः उनके पट्टपर श्रीमद्विजयधनचन्द्रसूरीश्वरजी विराजमान थे। आपने इनको सर्व प्रकार से योग्य समझ पृथक् विचरने तथा चतुर्मास कर स्वपर कल्याण करने की आज्ञा प्रदान की । आपने अद्यावधि श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज तथा श्रीमद्विजयधनचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब आदिके साथ २३ तथा स्वतंत्र १८ चतुर्मास किये हैं और छोटी मोटी १०१ तीर्थयात्राएं की हैं । इस समयमें आपने सहस्रों प्राणियों को आत्म-बोध देकर उनका कल्याण किया, उनको अभ्युदयपथ में स्थापन किया, और धर्मक्रिया में सक्रिय बनाया । स्थानाभाव से इन कृत्यों की केवल यहाँ आभामात्र दी जासकेगी।
आप पल्लवग्राही प्रकृति के मुनिराज नही हैं । साधु मुनिराज सर्ववर्ती होते हैं । आप भी सच्चे सर्ववर्ती हैं, प्रत्युत 'प्रथम प्रत्येक राष्ट्र का सुधार हो जाय तो विश्वका उद्धार स्वभावतः होगया' इस सिद्धान्तके आप माननेवाले तथा तदनु कूल चलनेवाले हैं । द्रव्यहोली आदि मिथ्या त्योहारों पर होनेवाले असभ्याचरण के रोकने में आपने पूरा पूरा श्रम किया है
और आपके सदुपदेश से इनका व्यवहारिकता में पर्याप्त सुधार भी हुआ है। - आपकी सुधार--शैली ऐसी आकर्षक एवं ग्राह्य है कि उसकी कार्यपरिणति शीघ्र की जासकती है । लक्ष्य सिद्धकरने के