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* प्राकृत व्याकरण *
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मलय 'टा' में स्थित 'ट' की इत्संज्ञा होने से 'द' का लोप होकर शेष प्रत्यय 'आ' की प्राप्ति होकर अप्पणा रूप सिद्ध हो जाता है । अथवा ३-४१ से पूर्व सिद्ध 'अप्प' शब्द में ही वृत्तांया विभक्ति के एक वचन में 'राजन वत् श्रात्मन शब्द सद्भावात् संस्कृतीय प्रत्यय 'टा' के स्थान पर 'णा' आदेश की प्राप्ति होकर (अध्पणा) रूप सिद्ध हो जाता है ।
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द्वितीय और तृतीय रूप (आत्मना = ) अवधिमा तथा अप्पrse में 'प' रूप तक की साधनिका प्रथम रूप वत्; और ३-५७ से तृतीया विभक्ति के एक वचन में 'टो' प्रत्यय के स्थान पर 'शिक्षा' और 'इआ' आवेश-प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप 'अप्पणिमा'' 'और 'अप्पणइओ' सिद्ध जाते हैं।
बच्छे रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-४ में की गई है।
रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२३ में की गई है ।।३ - १४ ||
भिरभ्यस्सुपि ॥ ३ - १५॥
एत ए र्भवति ॥ भिस् । वच्छेद्दि । वच्छेद्दि । वच्छेहि ॥ भ्यस् । चच्छेहि । वच्छेहिन्तो । वच्छे सुन्तो ॥ सुप् । वच्छेसु ||
अर्थः-- प्राकृतीय अकारान्त शब्दों में तृतीया विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'मिस्' के आदेशप्राप्त 'हि, हि और हिं' की प्राप्ति होने पर पंचमी विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'भ्यस्' के आवेश- प्रात रूप 'हि, हिन्तो और सुन्तो' की प्राप्ति होने पर और सप्तमो विभत के बहुवचन के प्रत्यय 'सुप' के आदेश प्राप्त रूप 'सु' की प्राप्ति होने पर शब्द अन्त्य स्वर 'य' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति हो जाती है । जैसे 'भिस' का वदाहरण: - वृक्षैः चच्छे, षच्छे और वच्छेहिं अर्थात् वृक्षों से । 'भ्यस्' का उदाहरण वृक्षेभ्यः = वच्छेहि, वच्छेोहिन्तो और वसुन्ती अर्थात वृक्षों से । 'सुप्' का उदाहरण: - वृक्षेषु वच्छेस अर्थात वृत्तों पर अथवा वृक्षों में।
'वच्छेहि', 'वच्छेहि' और 'बच्छे हैं' तृतीयान्त बहुवचन वाले रूपों को सिद्धि सूत्र - संख्या ६-७ में की गई है ।
'वच्छेदि', 'वच्छेदितो' और 'षच्छेन्ती' पंचम्यन्त बहु वचन वाले रूपों की सिद्धि सूत्रसंख्या ३९ में की गई है। वच्छेतु रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-२७ में की गई है । ३ - १५||
इदुतो दीर्घः ॥३–१६॥
इकारस्य उकारस्य च भिस् भ्यस्सुप्सु परेषु दीघो भवति ॥ भिस् । गिरीहिं । बुद्धीहिं । दहीहं । तहिं । धेहिं । महूहिं कथं ॥ भ्यस् । गिरीओ | बुद्धीओ । दद्दीओ । तरूओ ।
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