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प्राप्त प्रत्यय 'या' की प्राप्ति होने पर भी अन्त्य 'अ' स्वर को दीर्घ म्बर 'आ' को प्राप्ति हो जाती है। जैसेवृक्षानाम्=च्छा | मूल-सूत्र में यदि 'सि' इतना ही उल्लेख कर देते तो भी पंचमी विभक्ति के एक वचन में प्रदेश प्राप्त प्रत्ययों की प्राप्ति होने पर 'अ' को 'आ' को प्राप्ति होती है । ऐसा अर्थ अभि व्यक्त हो जाता; परन्तु पंचमी विभक्ति के एक बचन में और बहुवचन में 'सो, दो, दु, हि और हिन्तो' प्रत्ययों की एक रूपता है, एवं इस प्रकार का एकरूपता होने पर भी जहाँ दोनों वचनों में अन्त्य 'अ' को 'आ' की प्राप्ति होती है वहाँ बहुबदन में 'हि' और 'हिन्तो' प्रत्यय की संयोजना में सूत्र संख्या ३-१३ एवं ३-१५ से वैकल्पिक रूप से 'अ' का 'मा' की प्राप्ति भी हो जाया करती है । इस प्रकार मूल-सूत्र में 'तो' 'दो' और 'दु' ग्रहण करके पञ्चमी--बहुवचन के शेष प्रत्ययों हि' 'हिन्तों' और 'सुन्तो' में 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होती है-ऐसा विशेष अर्थ प्रतिध्वनित करने के लिये 'तो'; 'दो' एवं 'दु' प्रत्ययों को मूल-मूत्र में स्थान दिया गया है । जैसे:- वृक्षेभ्यः = वच्छाहि और वन्देहि तथा बच्चा हिन्तो और बच्छे हिन्तो । इस प्रकार पंचमी के एक वचन में 'एत्व' का निषेध करने के लिये और बहुवचन में 'ए' का विधान करने के लिये 'तो', दो और दु' प्रत्ययों का उल्लेख किया है।
'षच्छा' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-४ में की गई है।
* प्राकृत व्याकरण *
'बच्छाओ', 'षच्छा', 'वाद', 'अच्छा हिन्दो' और 'अच्छा' रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या इन्ट में की गई है।
'वच्छत्तों', 'वच्छानो' और 'बच्छाउ' बहुवचनान्त रूपों की सिद्धि सूत्र - संख्या -९ मैं को गई है।
'वच्छा' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या में की गई है । ३-१२ ॥
भ्यसि वा ।। ३-१३ ॥
स्यादेश परे तो दीर्घो वा भवति ॥ वच्छाहिन्तो । वच्छे हिन्तो । वच्छासुन्तो । बच्छे सुन्तो । वच्छाहि । वच्छेहि ॥
अर्थः- पंचमी बहुवचन के संस्कृतिीय प्रत्यय 'भ्यस्' के स्थान पर प्राकृत में श्रादेश प्राप्त प्रत्यय 'हिन्तो', 'सुन्तो' और 'हि' के पूर्वस्थ शब्दान्त्य हस्व स्वर 'का' के स्थान पर बैकल्पिक रूप से 'था' की प्राप्ति होती है । एवं सूत्र संख्या ३-१५ से वैकल्पिक पक्ष होने से 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति भी हुआ करती है । जैसे:-वृक्षेभ्यः = वच्छाहिन्तो अथवा वच्छे हिन्तो; वच्छासुन्यो अथवा वन्दे सुन्तो और चाहि अथवा वच्छेहि ॥
वृक्षेभ्यः – संस्कृत पंचभ्यन्त बहुवचन रूप है । इसके प्राकृत रूप वच्छाहिन्तो हिन्तो वच्छन्तो, वच्छे सुन्तो, वच्छाहि और अच्छेहि होते हैं। इनमें 'वच्छ' रूप तक की साधनिका ३-४ के