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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
देवे संस्कृत समम्यन्त रूप है । इस के रूप देव चोर देवनि से हैं। इसमें को प्रसन्न रूप में सूत्र-संख्या ३-१३७ से सममी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया-विभक्ति का विधान एवं तदनुसार ३-५ से द्वितीया-विभक्ति वाचक प्रत्यय म्' की प्रानि होकर प्रथम रूप देवम् सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(देवे) ऐषम्मि में सूत्र-संख्या ३-१५ से सत्रमा पिभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'कि-इ' के स्थान पर प्राकृत में 'मि' प्रत्यय को आवेश-प्राप्ति होकर देवमिम रूप सिद्ध हो जाता है।
तस्मिन् संस्कृत सर्वनाम सप्तम्यन्त रूप है । इसके प्राकृत रूप तम् और तम्मि होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-१३७ ले सभी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का विधान; तदनुसार ३-५ से संस्कृतीय सप्तमी-विभक्तिबोधक प्रत्यय 'जिन' के स्थान पर प्राकृत में द्वितीया विभक्ति वाचक प्रत्यय 'म्' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'तम् सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप-(तस्मिन्=) तम्मि में सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत सर्वनाम रूप 'तम् में स्थित अन्त्य हलन्त गलन 'त' का लोप और ३-११ से सप्तमी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'कि' के स्थानीय रूप 'स्मिन् के स्थान पर प्राकृत में 'म्मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप तम्मि' सिद्ध हो जाता है ॥ ३-११ ।।
जस्-शस्-सि-तो-दो-दामि दीर्घः ।।२-१२॥ एषु अतो दीर्घो भवति ।। जसि शसि च । वच्छा ॥ डिसि । बच्छाओ । वच्छाउ । पच्छाहि । वच्छाहिन्ती । वच्छा ॥ चो दो दुषु ।। वृक्षेभ्यः । वच्छत्तो। हस्वः संयोगे (१-८४) इति हस्वः ।। वच्छाओ। बच्छाउ । प्राभि । वच्छाण || सिनैव सिद्ध तो दो दु ग्रहण भ्यसि एत्वाधनार्थम् ।।
अर्थ:-प्राकृत अकारान्त शब्दों में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन का प्रत्यय 'जस' और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन का प्रत्यय 'शम' प्राप्त होने पर अन्त्य 'अ' स्वर का दीर्घ स्वर 'पा' हो जाता है। जैसे:-वृक्षाः = वच्छा और वृक्षान्-वच्छा । इसी प्रकार से पंचमो विभक्ति के एक वचन में 'इसि-अस्' के स्थान पर आदेश प्राप्त प्रत्यय 'या', 'उ', 'हि', 'हिन्तो' और 'प्रत्यय लुक' को प्राप्ति होने पर अन्त्य 'अ' स्वर का दीर्घ स्वर 'आ' हो जाता है। जैसे-वृक्षात्-वच्छाओ, बच्छाउ, वडाहि, धमछाहिन्तो और बच्छा । मूल-सूत्र में 'सो', 'दो' और 'दु' का जो विशेष उल्लेख किया गया है। उसका तात्पर्य इस प्रकार है कि-पंचमी विभक्ति के एक वचन में और बहुव वन में 'तो' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर प्रथम तो अन्त्य 'अ' के स्थान पर दीर्घ 'आ' की प्राप्ति होती है। तत्पश्चात सूत्र-संख्या १२४ से पुनः 'आ' को 'अ' की प्राप्ति हो जाती है । जैसे:-वृक्षात = पत्ता और वृक्षेभ्यः बच्छत्तो । 'दो-ओ' और 'दु-उ' प्रत्यय पंचमी-विभक्ति के एकचन में भी होते हैं और बहुवचन में भी होते हैं; तदनुसार दोनों ही वचनों में अन्त्य 'अ' को दोष 'आ' की प्राप्ति होती है। जैसे:-वृक्षेभ्या-बच्छाओं और बच्छात ॥ इसी प्रकार से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में भी संस्कृतीय प्रत्यय 'आम' के स्थान पर प्राकृत में आदेश