Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ८
सुस्वर अथवा दुःस्वर इन दोनों में से जिसका उदय हो, उसके उदीरक हैं। क्यों कि परस्पर विरोधी प्रकृति होने से दोनों का एक साथ उदय नहीं होता है । यद्यपि पूर्व में सामान्य से स्वरनाम के उदोरक पर्याप्त बताये जा चुके हैं, लेकिन भाषापर्याप्ति से पर्याप्त ही स्वर के उदीरक होते हैं, यह विशेष बताने के लिए यहाँ पुनः निर्देश किया है। तथा
जब तक उच्छवास और भाषा का रोध नहीं होता है, तब तक ही सयोगिकेवली भगवान उच्छ वास एवं स्वर नाम की उदीरणा के स्वामी होते हैं, तत्पश्चात् उदय नहीं होने से उदीरणा नहीं होती है। तथा
नेरइया सुहुमतसा वज्जिय सुहुमा य तह अपज्जत्ता। जसकित्त दीरगाइज्जसुभगनामाण सण्णिसुरा ॥१७॥
शब्दार्थ-नेरइया-नारक, सुहुमतसा ----सूक्ष्म त्रस, वज्जिय-छोड़कर, सुहुमा-सूक्ष्म, य-और, तह--तथा, अपज्जत्ता--अपर्याप्त, जसकित्तु दीरगाइज्ज--- यश कीर्ति के उदीरक, आदेव नाम, सुभगनामाण-सुभग नाम के, सण्णिसुरा--संज्ञी और देव ।
गाथार्थ-नारक, सूक्ष्मत्रस, सूक्ष्म तथा अपर्याप्तकों को छोड़कर शेष जीव यशःकोति के उदोरक होते हैं। आदेय और सुभग नाम के उदीरक सज्ञी और देव होते हैं।
विशेषार्थ-नारक, सूक्ष्मत्रस-तेजस्काय और वायुकाय के जीव, सूक्ष्मनामकर्म के उदय वाले सभी जोव तथा लब्धि-अपर्याप्त एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इन सबको छोड़कर शेष समस्त जीव यशःकीति के उदीरक हैं। इनमें भी जिनको यशःकीति का उदय सम्भव है और उनको जब यशःकीर्ति का उदय हो तभी उसकी उदीरणा करते हैं।
कितने ही संज्ञो मनुष्य और तिर्यंच तथा कितनेक देव जिनको उनका उदय हो, वे सुभग एवं आदेय नाम के उदीरक हैं। तथा
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