Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 174
________________ उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ३ १३६ परिशिष्ट : ३ प्रकृत्युदोरणापेक्षा मूल प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा : स्वामित्व प्रकृति नाम | सादि । अध्रव | अनादि | ध्र व स्वामित्व X भव्य ज्ञानावरण दर्शनावरण अंतराय (१२वें गुण. अभव्य । क्षीणमोह गुणस्थान समया तक के धिक xx आवलिका शेष तक नाम गोत्र सयोगि केवली गुणस्थान तक के के चरम समय तक वेदनीय " अप्रमत्त । गुणस्थान से गिरने पर सादि स्थान अप्राप्त प्रमत्त गुणस्थान तक के मोहनीय दसवें गुणस्थान | तक के | ११वें गुण. से गिरने पर आयु x x | भव के भव की प्रथम अन्त्य समय में आवलिका प्रवर्तमान में नहीं होने से । होने से अचरम आवलिका में वर्तमान प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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