Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 226
________________ पंचसंग्रह : भाग ८ परिशिष्ट स्थिति उदीरणा में अद्धाच्छेद का प्रारूप Jain Education International तस्वोदय बन्धोदया प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति लता OOOOO बंधावलिका उदयावलिका उदीरणा प्रायोग्य स्थितियां अद्धाछेद २ आवलिका मात्र ..10000000000 ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० बंधावलिका संक्रमावलिका उदयावलिका उदीरणा प्रायोग्य स्थितियाँ अद्धाच्छेद आवलिकात्रय प्रमाण संक्रम प्रायोग्य स्थितियां ० ० ० उदयसंक्रमोत्कृष्टा प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति लता ० मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थितिलता For Private & Personal use । ० ० ० ० ० ००० ००० ० ००० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० अन्तर्मुहूर्त मिथ्यात्व सम्यक्त्व की उदीरणायस्थिति आवलिकाधिक अन्तर्महर्त न्यून ७० को. को. | में ही स्थिति रूप से सागर प्रमाण सम्यक्त्व की स्थितिलता (मिथ्यात्व के संक्रम से) अन्तर्महतहीन ७० को. को. सागर. प्रमाण ० ० ० ० ० संक्रमावलिका अद्धाच्छेद ० ० ० ० ० उदयावलिका दो आवलिका न्यूनान्तमहर्त सम्यक्त्व की उदीरणा प्रायोग्य स्थितियाँ आवलिकाद्विक अधिक अन्तमहर्त न्यून ७० को को. सागर. प्रमाण मिश्र मोहनीय की स्थितिलता ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० (सम्यक्त्व के संक्रम से) अन्तर्महत उदयावलिका उदीरणा प्रायोग्य स्थितियाँ (आवलिकाधिक-अन्तर्मुहूर्तद्वय अन्तमूहर्तहीन ७० को. को. सागर. प्रमाण|| (सम्यक्त्वोदयकालीन) न्यून ७० को. को. सागर. प्रमाण') अद्धाछेद आवलिकाधिक अन्तर्महतं इसी पद्धति से शेष प्रकृतियों के अद्धाच्छेद स्वयं विचार कर लेना चाहिए । १ ग्रन्थकार ने उदयावलिका सत्कावलिकात्व नहीं कहा है किन्तु पद्धति क्रम से आवलिकाधिकत्व ग्रहण आवश्यक है। www.jainelibrary.org |

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