Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 189
________________ १५४ प्रकृतिनाम उ स्थि. असातावेद आव. द्विक उच्च गोत्र नीचगोत्र नरकायु तिर्यंचायु मनुष्यायु आव. द्विक न्यून ३० को. अधिक अंत. को. सागर मु. सह पल्यो. असं. भाग न्यून ३ / ७ सा. अंतर्मुहूर्त आवत्रिक न्यून २० को. को. सागर आव. द्विक न्यून २० को को. सागर आव. न्यून ३३ सागर आव. न्यून ३ पल्य 33 ज. स्थि. Jain Education International आव. द्विक अधिक अंतर्मु . सहित पल्यो. असं. भाग न्यून २ / ७ सागर १ समय १ समय " उ. स्वा. पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय मिथ्यात्वी पर्याप्त संज्ञी. मिथ्यात्वी देव और कुछ मनुष्य पर्याप्त संज्ञी मिथ्या. तिर्यंच मनुष्य नारक और नीव कुलोत्पन्न मनुष्य भवाद्य समय वर्ती उ. स्थि. वाला तिर्यंच पंचसंग्रह: भवाद्य समय वर्ती उ. स्थिति नारक वाला नारक For Private & Personal Use Only ज. स्वा जघ. स्थि. सत्ता वाला एकेन्द्रिय में से आगत संज्ञी बंधावलिका के चरम समय चरम समयवर्ती सयोगि. जघ स्थि. सत्ता वाला एकेन्द्रिय से आगत स्व. बंधावलिका का चरम समय संज्ञी समयाधिक आव. शेष समयाधिक आव. शेष तिच भवाद्य समय समयाधिक आव. शेष वर्ती उ. स्थि. मनुष्य वाला मनुष्य www.jainelibrary.org

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