Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 218
________________ उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १५ १८३ परिशिष्ट १५ प्रदेशोदीरणापेक्षा उत्तरप्रकृतियों की साद्यादि एवं स्वामित्व प्ररूपणा दर्शक प्रारूप - उत्कृष्ट प्रदे. जघन्य प्रदेशोप्रकृति नाम | जघन्य उत्कृष्ट अजघन्य अनुत्कृष्ट वा दोरण स्वा. अवधि बिना, २ । २ चार ज्ञानावरण, तीन दर्शनावरण, अंतराय पंचक समयाधिक | सर्व पर्याप्ति से आवलिका | पर्याप्त अति शेष क्षीण | सक्लि. मिथ्या. मोही दृष्टि अवधि द्विकावरण | अवधि लब्धि अवधि लब्धि रहित, युक्त सर्व पर्याप्ति । समयाधिक से पर्याप्त अति आव. शेष संक्लिष्ट मिथ्याक्षीणमोही | दृष्टि निद्रा, प्रचला २ २ २ २ उपशांत मोही तत्प्रायोग्य संक्लि. मध्यम परिणामी | संज्ञी स्त्याद्धित्रिक २ २ २ २ । तत्प्रायोग्य | विशुद्ध प्रमत्त वेदनीयद्विक २ . २ २ २ अप्रमत्त भि- सर्व पर्याप्ति से मुख प्रमत्त | पर्याप्त अति यति | संक्लिष्ट मिथ्या दष्टि Potrivate & Personal use only www.jainelibrary.org Jain Education international

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