Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 223
________________ १८८ पंचसंग्रह : ८ प्रकृति नाम | जघन्य | उत्कृष्ट | अजघन्य अनुत्कृष्ट | उत्कृष्ट प्रदे. | जघन्य प्रदेशोउदी. स्वा. | दोरणा स्वा. २ । २ । तैजस सप्तक, वर्णादि बीस, अगुरुलघु, निर्माण, स्थिरद्विक अस्थिरद्विक २ । २ । चरम समय- सर्वोत्कृष्ट वर्ती सयोगी संक्लिष्ट मिथ्या. पर्याप्त संज्ञी नरक, तिर्यंचा- २ नुपूर्वी २ २ | २ | विग्रहगति, विग्रहगतिवर्ती तृतीय समय- अति संक्लिष्ट वर्ती क्षायिक क्रमशः नारक सम्यक्त्वी । और तिर्यंच क्रमशः नारक, और तिर्यंच देव- - २ - २ , २ . मनुष्यानुपूर्वी २ विग्रहगति, | विग्रहगतिवर्ती तृतीय समय- अति संक्लिष्ट वर्ती क्षायिक मिथ्यात्वी सम्यक्त्वी , | क्रमश: देव विशुद्ध और मनुष्य सम्यक्त्वी क्रमशः देव और मनुष्य आतप २ . २ । २ । २ ।। अति विशुद्ध , अति संक्लिष्ट पर्याप्त खर पर्याप्त खर पथ्वीकाय । पृथ्वीकाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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