Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 221
________________ १८६ प्रकृति नाम | जघन्य उत्कृष्ट अजघन्य अनुत्कृष्ट तिर्यंचमनुष्यायु नीच गोत्र २ उच्चगोत्र देवगति, नरकगति तिर्यंचगति २ मनुष्यगति M v Y Jain Education International २ A ४ N Ꭴ २ o W Ο २ उत्कृष्ट प्रदे. उदी. स्वा. अष्ट वर्षायुष्क त्रिपल्योपमायुष्क आठवें वर्ष में प्रति सुखी क्रमशः वर्तमान अति तिर्यंच और मनुष्य दुःखी क्रमशः तिर्यंच और मनुष्य चरम समय वर्ती सयोगी पंचसंग्रह : ८ संयमाभिमुख सर्वोत्कृष्ट चरम समयवर्ती अवि. सम्यक्त्वी विशुद्ध क्षायिक सम्यक्त्वी क्रमशः देव और नारक जघन्य प्रदेशोदोरणा स्वा. For Private & Personal Use Only संक्लिष्ट मिथ्या दृष्टि पर्याप्त संज्ञी " " सर्व विशुद्ध | सर्वोत्कृष्ट देशविरत संक्लिष्ट मिथ्या. पर्याप्त तिर्यंच तिर्यंच चरम समय- सर्वोत्कृष्ट वर्ती सयोगी संक्लिष्ट मिथ्या दष्टि गर्भज पर्याप्त मनुष्य www.jainelibrary.org

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