Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 220
________________ उदीरणाकरण- प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १५ प्रकृति नाम जघन्य उत्कृष्ट अजघन्य अनुत्कृष्ट उदी. स्वा. उत्कृष्ट प्रदे. प्रत्या. चतुष्क संज्वलन त्रिक 'ज्वलन लोभ हास्यषट्क defor नरका देवायु २ U २ r Jain Education International ४ له २ o Y २ संयमाभिमुख चरम समय - वर्ती देशविरत स्वोदीरणा चरम समयवर्ती क्षपक अनिवृत्ति करण समयाधिक आव. शेष क्षपक सूक्ष्मसंपरायी चरम समय वर्ती क्षपक अपूर्वकरण स्वोदीरणा चरम समय वर्ती क्षपक अनिवृत्तिकरण उ. स्थिति वाला तीव्र दुखी सप्तम पृथ्वी नारक For Private & Personal Use Only जघन्य प्रदेशोदोरणा स्वा. सर्वपर्याप्ति से पर्याप्त अतिसंक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि 11 १८५ 11 11 जघन्य स्थिति वाला सुखी नरक (ज. स्थितिवाला उ. स्थिति वाला तीव्र दुखी देव सुखी अनुत्तरवासी www.jainelibrary.org

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