Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १४
१८१ परिशिष्ट : १४ प्रदेशोदोरणापेक्षा मूलप्रकृतियों की साद्यादि एवं स्वामित्व
प्ररूपणा का प्रारूप
प्रकृति नाम | जघन्य | उत्कृष्ट | अजघन्य अनुत्कृष्ट उ. स्वा.
ज.स्वा .
ज्ञानावरण | सादि, | सादि, | सादि, | अनादि, समयाधिक | अति. संक्लि. दर्शनावरण | अध्रव | अध्र व अध्र व | ध्र व, आवलिका | मिथ्यात्वी
अध्र व | शेष क्षीण | पर्याप्त
मोही संज्ञी
वेदनीय
,,
,
सादि, अप्रमअनादि, त्ताभिमुख ध्र व, प्रमत्त अध्र व |
यति
मोहनीय
समयाधिक आव. शेष
सूक्ष्म
संपरायी
आयु
"
|
"
"
सादि, | अति | अति सुखी अध्र व | दुःखी । जीव
जीव
नाम, गोत्र
"
"
"
अनादि, चरम अति. संक्लि . ध्र व, समय मिथ्यात्वी अध्र व ) वर्ती । पर्याप्त
सयोगी । संज्ञी
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