Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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परिशिष्ट :
प्रकृति नाम उत्कृष्ट स्थिति जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्वा.
ज्ञानावरण आव. द्विकन्यून १ समय पंचक, दर्शना ३० को. को. चतुष्क, अंत- सागर
रायपंचक
निद्राद्विक
त्यान त्रिक
उत्तरप्रकृतियों का स्थिति उदीरणा प्रमाण एवं स्वामित्व
जघन्य स्वामी
मिथ्यात्वमोह आव. द्विक न्यून ७०. को.
को. सागर
मिश्रमोह
अन्त. न्यून ३० को. को.
आद्य बारह कषाय
Jain Educati
सम्यक्त्व- एक अन्त. न्यून ७० को. को. सागर
मोह
""
ternational
11
पल्यो. का असं. भाग न्यून ३ / ७ सा. मिथ्यात्वी
पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय
१ समय
पल्यो. असं.
भाग न्यून
१ सागर
१ समय
आव. द्विक
आव. द्विक यून ४० को. अधिक पल्यो को. सागर असं. भाग
अति.
पर्याप्त
पंचेन्द्रिय
मिथ्यात्वी
न्यून ४/७
सागर
For Priva
पर्याप्त संज्ञी पंचे. मिथ्या. | मनुष्य, तिर्यंच
सं ०
पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय
मिथ्यात्वी
मिश्रदुष्टि
क्षयोपशम
सम्यक्त्वी
पर्याप्त
संज्ञ
पंचसंग्रह:
पंचेन्द्रिय मिथ्यात्वी
समयाधिक आव. शेष क्षीणमोही
धावलिका के अन्त में स्थिति सत्तावाला
ज.
एकेन्द्रिय
"1
मिथ्यात्व की प्रथम स्थिति समयाधिक आव. शेष मिथ्यात्वी
एके. समान ज. स्थि. वाला एके. में से आगत सं. पंचे. मिश्र दृष्टि
क्षायक सम्यक्त्व प्राप्त करने वाला आव. शेष
४-७ गुण वाले यथा संभव चारों गति के वेदक सम्यक्त्वी
बंधावलिका के अंत
में जघन्य स्थिति सत्ता वाला एकेन्द्रिय
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