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उदीरणाकरण - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ८
प्रकृति नाम
संज्व. त्रिक
संज्व. लोभ
हास्यप-रति शोक- अरति
"भय, जुगुप्सा
तीन वेद
उ० स्थिति
आव. द्विक न्यून ४० को.
को. सागर
17
17
"
ज. स्थिति
आव. त्रिक आव. द्विक
न्यून ४० को. को. सागर
१ समय
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"
अधिक अन्तमुहूर्त सह पल्यो. असं.
भाग न्यून ४/७ सागर
आव. द्विक अधिक पल्यो.
असं. न्यून ४/७ सागर
एक समय
उ० स्वामी
पर्याप्त संज्ञी. पंचे. मिथ्यात्व
सातावेदनीय | आव. त्रिक आव. द्विक न्यून ३० को. अधिक अन्तको. सागर मु. सह पल्यो.
असं. भाग न्यून ३/७
सागर
37
"
11
"
31
ज. स्वा.
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समयाधिक आव. शेष क्षपक उपशमक दर्शम
गुणस्थानवर्ती
नवम गुणस्थानवर्ती क्षपक स्वोदय
चरम समय
"2
१५३
धावलिका के अंत में ज स्थिति सत्ता वाला एकेन्द्रिय
क्षपक नौवें गुणस्थान में स्वोदीरणा के अन्त
समय
ज. स्थिति सत्ता
वाला एकेन्द्रिय में से आया संज्ञी,
धावलिका के
चरम समय
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