Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 208
________________ उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १३ १७३ प्रकृति नाम उत्कृष्ट अनु. उदी. स्वा. जघन्य अनु. उदी. स्वा. अन्तरायपंचक सलिल लब्धियुक्त भवाद्य | समयाधिक आव. शेष समयवर्ती सुक्ष्म एकेन्द्रिय | क्षीणमोही मिथ्यात्वमोह अति सं. परिणामी एक साथ सम्यक्त्वमिथ्या. पर्याप्त संज्ञी। संयमाभिमुख चरम समयवर्ती मिथ्यात्वी मिश्रमोहनीय अतिसंक्लिष्ट मिथ्यात्वा- सम्यक्त्वाभिमूख चरम भिमुख चरम समयवर्ती समयवर्ती मिश्रदृष्टि मिश्र दृष्टि सम्यक्त्वमोहनीय मिथ्यात्वाभिमुख चरमसमयवर्ती सम्यग्दृष्टि क्षायिक सम्यक्त्वाभिमुख समयाधिक आव. शेष. वेदक सम्यग्दृष्टि अनन्ता. चतुष्क अतिसंक्लि. मिथ्यादृष्टि ! एक साथ सम्यक्त्वपर्याप्त संगी संयमामि मुखी चरम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि अप्रत्या. चतुष्क संयमाभिमुख चरम समय वर्ती अविरत सम्यग्दृष्टि प्रत्या. चतुष्क संयमाभिमुख चरम समयवर्ती देशवरित संज्व. त्रिक स्वोदय चरम समयवर्ती अनिवृत्ति क्षपक संज्व. लोभ समयाधिक आव. शेष.. क्षपक सूक्ष्मसंपरायवर्ती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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