Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 207
________________ १७२ पंचसंग्रह : ८ परिशिष्ट १३ अनुभागोदीरणापेक्षा उत्तरप्रकृतियों के उत्कृष्ट जघन्य अनुभाग---- स्वामित्व का प्रारूप प्रकृति नाम उत्कृष्ट. अनु. उदी. स्वा. | जघन्य अनु. उदी. स्वा. मति-श्रुतावरण अतिसंक्लि. परिणामी | सर्वोत्कृष्ट पूर्वलब्धिघर मिथ्यात्वी पर्याप्त संज्ञी समयाधिक आव शेष क्षीणमोही अवधिद्विक-आवरण अबधिलब्धि रहित अति- | परमावधि समयाधिक संक्लि. परिणामी मिथ्या. आव. शेष क्षीणमोही पर्याप्त संज्ञी मनपर्याय ज्ञानावरण | अतिसंक्लि. पर्या. संज्ञी | विपुलमतिमनपर्यायज्ञानी समयाधिक आव. शेष क्षीणमोही केवलद्विक-आवरण समयाधिक आव. शेष क्षीणमोही चक्षुदर्शनावरण अतिसंक्लि. परिणामी सर्वोत्कृष्ट पूर्वल ब्धिधर पर्याप्त, चरमसमयवर्ती | समयाधिक आव. शेष त्रीन्द्रिय क्षीणमोही अचक्षुदर्शनावरण सर्वाल्प लब्धियुक्त भवाद्य समयवर्ती सूक्ष्म एकेन्द्रियादि निद्रा-प्रचला तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट | उपशांत मोहवर्ती, दो मध्यम परिणामी पर्याप्त | समयाधिक आव. शेष क्षीणमोही स्त्यानद्धित्रिक तत्प्रायोग्य विशुद्ध प्रमत्त यति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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