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उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ८
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प्रकृति नाम | उ. स्थि. / ज. स्थि.
उ. स्वा.
ज स्वा
आहारक सप्तक
| अंतम न्यून सातवें प्रथम समय चरम भवी आहारक
अंतः को. | गुणस्थान में वर्ती आहारक शरीरी चरम समय को. सागर संभव शरीरीवर्ती मुनि
जघन्य प्रमत्तमुनि अन्त: को. को. सागर
वज्रऋषभ- तीन आव. | अन्तम हुर्त | मिथ्याद ष्टि | चरम समयवर्ती नाराच न्यून २० को.
पर्या. संज्ञी सयोगि. संहनन को. सागर
मनुष्य, तिर्यंच
मध्यम संह. चतुष्क
आव. द्विक अधिक पांच अन्त. सहित पल्यो . अ. भा. न्यून २/७ सा
जघन्य स्थिति सत्तावाला एके. में से आग त स्वबंध आव. चरम समयवर्ती संज्ञी
सेवार्त
संहनन
आवलिका|धिक अन्त. न्यून २० को. को. सागर
उत्पत्तिस्थान के प्रथम समय में मि. पर्या. संज्ञी तियंच
समचतुरस्र- आवलिका | अन्तमुहूर्त संस्थान
त्रिक न्यून २० को. को. सागर
नारक बिना चरम समय वर्ती मिथ्या. सर्व सयोगि. पर्याप्ति से
पर्याप्त
मध्यमसंस्थान चतुष्क
सर्वपर्याप्ति से पर्या. मिथ्या. संज्ञी मनुष्य तिर्यंच
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