Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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उदी रणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ८
१५६
प्रकृतिनाम | उ स्थि. | ज. स्थि. उ. स्थि. स्वा. ज. स्थि. स्वा.
-
आतप
आव. अधिक आव. द्विक शरीर पर्याति । जघन्य स्थिति सत्ता अन्त. न्यून अधिक पल्यो. से पर्याप्त । वाला शरीर पर्याप्ति२० को. | असं. भाग | प्रथम समय | पर्याप्त खर पृथ्वीकाय को. सागर | यून २/७ में खर बादर
सागर पृथ्वीकाय
उद्योत
| आव. द्विक न्यून २० को. को. सागर
उत्तर शरीरी जघन्य स्थिति देव
सत्ता वाला शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त स्वोदय वर्ती एकेन्द्रिय
उपघात
अन्तमुहर्त मिथ्या.पर्याप्त चरम समय वर्ती
संज्ञी पंचेन्द्रिय सयोगी
पराघात
उच्छ्वास
स्वनिरोध चरम समयवर्ती सयोगि.
तीर्थंकर । पल्यो . का
असं. भाग
,
| स्वयोग्य उ. | चरम समयवर्ती स्थि. स. वाला सयोगी जिन केवली प्रथ. समयवर्ती तीर्थं. केवली
स्थिर. शुभ | आव. त्रिक
न्यून २० को. को. सागर
मिथ्याइष्टि चरम समयवर्ती पर्याप्त संज्ञी सयोगि.
पंचेन्द्रिय
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